खुले आसमां का पता चाहते हैं
परिन्दे हैं हम और क्या चाहते हैं
उड़ेंगे हवा में ख़ुदी के परों से
उड़ानों में सारी फ़ज़ा चाहते हैं
बहुत रह चुके क़ैद में हम परिन्दे
असीरी* से अब हम रिहा चाहते हैं
कहो कितना कुचलोगे गैरत हमारी
जुनूँ की हदों तक अना चाहते हैं
गुनहगार ही मुंसिफ़ी कर रहा हो
वहां क्या बताएं कि क्या चाहते हैं