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खुश्बू के सिक्के हैं / सोम ठाकुर

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गाँधी के सिक्के हैं, नेहरू के सिक्के हैं
होरी की अंटी में आँसू के सिक्के हैं
होरी की अंटी में आँसू के सिक्के हैं
धनिया की आँखों में आँसू के सिक्के हैं

लोगों के जौन - जानम दुविधा में बीत गए
ज़हरीला मौसम है , मंगल-घट रीत गए
सूर्य - समारोहों में ये कैसा मौसम है
हंसों के पंजों में उल्लू के सिक्के हैं

पतझर में चल न सकीं हड्डियाँ वसंतों की
पर्चियों चलीं अनाम माफ़िया महंतों की
कहने को दिन है , पर रात के तमाशे हैं
किरणों की सरहद में जुगनू के सिक्के हैं

कैसा है जप-तप जो गंगा भी मैली है
कालिया न मारा, जो भानुजा विषैली है
कौन मुक्तिदायिनी है, कौन पतित - पावनी
गर्म लहू में डूबे लहू के सिक्के हैं

पछुआ से गल- गलकर हमने ये देखा है
हिमवानों के के माथे उलझन की रेखा है
हम तो बंजारे है फूलों की घाटी के
अपनी अंजूरी में तो खुशबू के सिक्के हैं