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खूँटियों पर टँगे हैं लोग / आनंद तिवारी

नेकी बदी की
गठरी बाँधे
खूँटी-खूँटी टँगे हैं लोग
       किसे क्या बताएँ
       सब अपने
       रंगों में ही रंगे हैं लोग ।

दुनिया लगती है
बेमानी
आसमान झूठा लगता है
अपने सब
जब रंग बदलते
मीठा दूध मठा लगता है
       तंग गली में
       दौड़ लगाते
       देख-देख कर ठगे हैं लोग ।

कोहरे को
परदा मत समझो
इसके पीछे क्या कर लोगे
नदिया की धारा
बहने दो
रोकोगे तो ख़ुद भोगेगे
       पुल पर क्या
       चल पाएँगे ये
       रेलिंग पर जो टंगे हैं लोग ।