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खूब मुझको अब बजाओ झुनझुना है ज़िन्दगी / कैलाश झा 'किंकर'

खूब मुझको अब बजाओ झुनझुना है ज़िन्दगी
मुफलिसों की चारसू संवेदना है ज़िन्दगी॥

नौनिहालों के लिए भी तुम नहीं गंभीर हो
लग रहा चारों तरफ़ उत्तेजना है ज़िन्दगी।

धन-कुबेरों पर टिकी हैं आज भी उनकी नज़र
कामगारो! देख अन्धेरा घना है ज़िन्दगी।

आस की खेती हुई पर हर तरफ़ उल्टा असर
लूटने वालों से करती सामना है ज़िन्दगी।

था जहाँ संतोष धन उसकी जगह ले ली हवस
स्वार्थ में अन्धी बनी दुष्कामना है ज़िन्दगी।

हो रही घटना मुसलसल शर्म से झुकता है सिर
सिरफिरों की सोच में बस वासना है ज़िन्दगी।