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खेत, मेघ, दरया की बात अब पुरानी है / कविता विकास

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खेत, मेघ, दरया की बात अब पुरानी है
खोई गांवों ने अस्मत, थम गई रवानी है

अब न सजतीं चौपालें, पेड़ कट गए सारे
आम, नीम, पीपल की रह गई निशानी है

गांव में जो बसता था वह किधर गया भारत
आधुनिकता की आँधी ला रही विरानी है

हावी हो गया फैशन इल्म ओ हुनर पर अब
सर से पल्लू उतरा है, आँखों में न पानी है

स्क्रीन और गूगल ने, खेल छीने बच्चों के
बिन जिये ही बचपन को, आ गयी जवानी है

वो लुका-छिपी, गिल्ली–डंडा वाले दिन बीते
विडियो गेम का कोई अब हुआ न सानी है

बीच अलगू–जुम्मन के, दौर नफ़रतों का है
यार दोस्तों में अब, ख़ूब खींचातानी है

पोखरों में सूखा जल, हैं मवेशी खतरे में
उनको डाल संकट में खुद भी मुँह की खानी है