भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"खेलन चली होरी गोरी मोहन संग / रसूल" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रसूल |संग्रह= }} {{KKCatKavita‎}} Category:भोजपुरी भाषा <poem> खेलन …)
 
 
पंक्ति 3: पंक्ति 3:
 
|रचनाकार=रसूल
 
|रचनाकार=रसूल
 
|संग्रह=
 
|संग्रह=
}}
+
}}{{KKAnthologyHoli}}
 
{{KKCatKavita‎}}
 
{{KKCatKavita‎}}
 
[[Category:भोजपुरी भाषा]]
 
[[Category:भोजपुरी भाषा]]

19:26, 15 मार्च 2011 के समय का अवतरण

खेलन चली होरी गोरी मोहन संग ।
कोई लचकत कोई हचकत आवे
कोई आवत अंग मोड़ी ।
कोई सखी नाचत, कोई ताल बजावत
कोई सखी गावत होरी ।

मोहन संग खेलन चली होरी, गोरी ।
सास ननद के चोरा-चोरी,
अबहीं उमर की थोड़ी ।

कोई सखी रंग घोल-घोल के
मोहन अंग डाली बिरजवा की छोरी ।
मोहन संग खेलन चली होरी, गोरी ।
का के मुख पर तिलक बिराजे,
का के मुख पर रोड़ी ।
गोरी के मुख पर तिलक विराजे,
सवरों के मुख पर रोड़ी ।

मोहन संग खेलन चली होरी, गोरी ।
कहत रसूल मोहन बड़ा रसिया
खिलत रंग बनाई ।
भर पिचकारी जोबन पर मारे
भींजत सब अंग साड़ी ।
हंसत मुख मोड़ी ।

मोहन संग खेलन चली होरी, गोरी ।