भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

खेली खूब बज़ट में होली वा भई वा / महेश कटारे सुगम

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

खेली खूब बज़ट में होली वा भई वा ।
फाड़ी है चड्डी और चोली वा भई वा ।।

भगवा रंग गुलाल उड़ाती फिरती है
छोड़ रखी है ऐसी टोली वा भई वा ।

रंग उड़ाते फिरते हो स्मार्ट सिटी
नहीं बहुत सौं पर है खोली वा भई वा ।

मेहंगाई का रंग बहुत ही गहरा है
सूझ रही है तुम्हें ठिठोली वा भई वा ।

रोज़गार का रंग अभी तक फीका है
लेकिन बातें हैं बड़बोली वा भई वा ।

ज़र्द रंग से चेहरों की रौनक ग़ायब
तुम्हें दिख रही कुमकुम रोली वा भई वा ।

रंग सवालों के चुभते हैं आँखों में
सजा रहे हो सुगम रंगोली वा भई वा ।

28-02-2015