भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"खेलूँगी कभी न होली / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला" |संग्रह=गीतिका / सूर…)
 
 
पंक्ति 4: पंक्ति 4:
 
|संग्रह=गीतिका / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
 
|संग्रह=गीतिका / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
 
}}
 
}}
 +
{{KKAnthologyHoli}}
 
{{KKCatKavita}}
 
{{KKCatKavita}}
 
<Poem>
 
<Poem>

12:32, 20 मार्च 2011 के समय का अवतरण

खेलूँगी कभी न होली
उससे जो नहीं हमजोली ।

यह आँख नहीं कुछ बोली,
यह हुई श्याम की तोली,
ऐसी भी रही ठठोली,
गाढ़े रेशम की चोली-

अपने से अपनी धो लो,
अपना घूँघट तुम खोलो,
अपनी ही बातें बोलो,
मैं बसी पराई टोली ।

जिनसे होगा कुछ नाता,
उनसे रह लेगा माथा,
उनसे हैं जोडूँ-जाता,
मैं मोल दूसरे मोली