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खेल-सियासत / हृदयेश

यह कैसी शतरंज बिछी है,
जिसपर खड़े पियादे-से हम
खेल-खेल में पिट जाते हैं,
कितने सीधे-सादे-से हम ।

      बिना मोल मोहरे बनें हम
      खड़े हुए हैं यहाँ भीड़ में
      ऐसी क्या है मज़बूरी जो
      बँधे प्राण राजा-वजीर में

फलक-विहीन किसी तुक्के-सा चलते हैं,
जिस-तिस के हाथों
राजा के हाथी-घोड़ों से कुछ थोड़े,
कुछ ज़्यादे-से हम ।

      हम कैसे सर्कस के बौने
      डग-डग में दुनिया नापें
      सबके आगे चलते जाएँ
      उठते-गिरते कभी न काँपे

अपना सब कुछ लगा दाँव पर
राजा की शह-मात बचाएँ
खेल-सियासत की हर बाज़ी
अपने कंधों लादे-से हम ।

      यहाँ खेल के कुछ उसूल हैं
      बने हुए कुछ चौखट-ख़ाने
      हुक्म हमें हैं चढ़े दाँव पर
      मर-कट जाएँ इसी बहाने

कौन खिलाड़ी, कौन अनाड़ी,
हमको इससे मतलब ही क्या
राजा की मायानगरी में
झूठे कसमें-वादे-से हम ।