Last modified on 9 सितम्बर 2019, at 01:18

खोया हुआ दिमाग़ है वहशत है और तू / प्रणव मिश्र 'तेजस'

Jangveer Singh (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:18, 9 सितम्बर 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रणव मिश्र 'तेजस' |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

खोया हुआ दिमाग़ है वहशत है और तू
दुनिया के चन्द लोग हैं ज़ुल्मत है और तू

उजड़े हुये दयार में ख़्वाबों की राख पर
इक बेरहम उमीद की ज़ीनत है और तू

मुझको शबे-फ़िराक़ में अच्छा ही लग रहा
नश्शा है मर्ग ए यास का राहत है और तू

दरिया की प्यास प्यास थी सागर से बुझ गई
लेकिन हमारी प्यास में कुल्फ़त है और तू

शौक़ ए विसाल देख के निकले हैं जिस्म से
जाना नहीं उधर के जिधर छत है और तू