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"खोल ना गर मुख जरा तू, सब तेरा हो जाएगा / गौतम राजरिशी" के अवतरणों में अंतर
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है नियम बाज़ार का ये जो न बदलेगा कभी | है नियम बाज़ार का ये जो न बदलेगा कभी | ||
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भीड़ में यूँ भीड़ बनकर गर चलेगा उम्र भर | भीड़ में यूँ भीड़ बनकर गर चलेगा उम्र भर |
00:06, 31 अगस्त 2009 का अवतरण
खोल ना गर मुख ज़रा तू,सब तेरा हो जाएगा
गर कहेगा सच यहाँ तो हादसा हो जाएगा
भेद की ये बात है यूँ उठ गया पर्दा अगर
तो सरे-बाज़ार कोई माजरा हो जाएगा
इक ज़रा जो राय दें हम तो बनें गुस्ताख-दिल
वो अगर दें धमकियाँ भी, मशवरा हो जाएगा
है नियम बाज़ार का ये जो न बदलेगा कभी
वो है सोना जो कसौटी पर ख़रा हो जाएगा
भीड़ में यूँ भीड़ बनकर गर चलेगा उम्र भर
बढ़ न पाएगा कभी तू,गुमशुदा हो जाएगा
सोचना क्या ये तो तेरे जेब की सरकार है
जो भी चाहे, जो भी तू ने कह दिया, हो जाएगा
तेरी आँखों में छुपा है दर्द का सैलाब जो
एक दिन ये इस जहाँ का तज़किरा हो जाएगा
यूँ निगाहों ही निगाहों में न हमको छेड़ तू
भोला-भाला मन हमारा मनचला हो जाएगा