भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

खो गए थे तुम उजाले में / कुमार शिव

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:33, 22 मार्च 2021 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुमार शिव |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatGeet}}...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

खो गए थे तुम उजाले में
तुम्हें पाया अन्धेरे में !

रेशमी स्पश॔ केशों के
किए अनुभूत मैंनें
चख लिए हैं शाख पर ही
रसभरे शहतूत मैंने

गन्ध में डूबी हुई थी शीश तक
याद की काया अन्धेरे में !

रास्ता अवरुद्ध था लेकिन
सुरंगें सामने थीं
पेड़ पर लटकी हुई नीली
पतंगें सामने थीं

क्या हुआ मुझको मैं अपना
 ढूँढ़ता साया अन्धेरे में !