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ख्वाहिश मुझे जीने की ज़ियादा भी नहीं है / अनवर जलालपुरी
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ख्वाहिश मुझे जीने की ज़ियादा भी नहीं है
वैसे अभी मरने का इरादा भी नहीं है
हर चेहरा किसी नक्श के मानिन्द उभर जाए
ये दिल का वरक़ इतना तो सादा भी नहीं है
वह शख़्स मेरा साथ न दे पाऐगा जिसका
दिल साफ नहीं ज़ेहन कुशादा भी नहीं है
जलता है चेरागों में लहू उनकी रगों का
जिस्मों पे कोई जिनके लेबादा भी नहीं है
घबरा के नहीं इस लिए मैं लौट पड़ा हूँ
आगे कोई मंज़िल कोई जादा भी नहीं