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गंगा-5 (दूसरी नदी में) / कुमार प्रशांत

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आधी रात :
नदी को इन सारे प्रहरों में देखो
आँख भर
मन भर और
इसकी गहराइयों को तोलो

हर पहर की नदी अलग ही होती है
तुम एक ही नदी को
अलग-अलग प्रहरों में देख नहीं सकते
वह हमेशा दूसरी हो जाती है