भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गंध अनाम / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

Kavita Kosh से
वीरबाला (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:14, 25 दिसम्बर 2019 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

182
गंध अनाम
दे जाती चुपके से
तेरा पैग़ाम।
183
प्राणों में घुले
अलग करूँ कैसे
तुम्हारा नाम ।
184
टूटा घोंसला
न तोड़ चिड़िया का
आँधी हौसला।
185
पूजा के मन्त्र
बदल नहीं पाए
छल का तन्त्र।
186
कभी तो मिलो
सागर में मिलतीं
सरिता जैसे।
187
जीवन क्रूर
दुःख गलियों घूमें
सुख थे दूर।
188
आरोप लाखों
मंजूर सब किए
झूठे थे सारे।
189
दर्द लिपटे
बाहर व भीतर
जीना दूभर।
190
अंधों ने दिया
दर्पण टूटा हुआ
रूप न दिखा।
191
जाएँगे कहाँ
न घर, न है द्वार
सूना संसार।
192
देवता जन्मा
असुर बना डाला
धन्य हैं लोग।( 23-12-19)
193
चाय की प्याली
कैसे अधर धरूँ मै
है कोसों दूर
-0-15-12-2019