भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गंध / विनय सौरभ

Kavita Kosh से
Kumar mukul (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:01, 4 अक्टूबर 2018 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

{{KKCatK avita}}

(संदीप नाईक के लिए)

पुरानी किताबों की गंध की तरह
बसी है तुम्हारी याद

किताबें जो हमने पैदल चलकर
पैसे बचाते हुए खरीदीं

किताबें जो हमें प्रिय थीं
और जो हमें उपहार में मिलीं
और कुछ फुटपाथ पर
विस्मित कर देने वाली तारीख़ों
और हस्ताक्षरों से भरी हुईं

धूसर हो गयी शीशम की आलमारी में
बरसों से जतन से​​ रखी गयीं
जिन्हें झाड़-पोंछ कर आता रहा हूँ
जीवन के लंबे और अपरिचित रास्तों पर

स्मृतियों को बचाता हुआ
समय की धूल से !

किताबों पर अपने नाम
शहर और तारीख़ लिखने की याद बाक़ी है
गोकि हमें अभी और शहर बदलने थे !

अभी भी शामिल हो तुम
एक ऐसी ही याद में !