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गजबे बा इ देश / हरेश्वर राय

गजबे बा इ देश रे भइया
खल-खल के गीत गावेला ।

सत्य बुद्ध के कहाँ गइल
उपनिषद के शांति कहाँ गइल,
राष्ट्रपिता के अहिंसा
कहाँ भगत के क्रांति गइल ।

उज्जर झक खादी के ऊपर
छलिया दाग लगावेला ।

पंचायत के चौपालन पर
पांचाली के चीर हराता,
लाशन के टीला पर बइठल
भेड़िया अजब-गजब मुस्काता ।

अखबारन के पन्नन से
गंध चिराइन आवेला ।

लोकतंत्र के सुन्दर मुँह पर
घाव भइल बा भारी,
चोर उचक्का राजा बनले
मेहनतकश भिखारी ।

छल परपंच करेवाला ही
एहिजा सब कुछ पावेला ।