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गज़ल-एक / रेणु हुसैन


कौन हैं अपने, कौन पराए
चेहरे सारे सुने सुनाए

रात खड़ी है दरवाज़े पर
जाने कब सुबहा आ जाए

तन्हाई बढ़ती जाती है
काश जरा बारिश आ जाए

जो मन की पर्तों को खोले
कोई ऐसी ग़ज़ल सुनाए

जिसने काटी उम्र कफ़स में
अपनी रिहाई से डर जाए