भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गज़ल जागण के लिए / सुरेश कुमार शुक्ल 'संदेश'

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:43, 6 दिसम्बर 2021 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुरेश कुमार शुक्ल 'संदेश' |अनुवाद...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

भोर की शबनमी जालियाँ जालियाँ।
खिलखिलाने लगीं बालियाँ बालियाँ।

अंग प्रत्यग में छवि वसन्ती जगी
लहलहाने लगीं डालियाँ डालियाँ।

है प्रगति पर प्रदूषण शहर दर शहर
हर्ष उत्कर्ष पर नालियाँ नालियाँ।

लग न पाया अभी जाम पा जाम है
फूट कर रो पड़ी प्यालियाँ प्यालियाँ।

खूब पीकर जिधर से गुजर वे गये
स्वागतोत्सुक मिलीं गलियाँ गालियाँ।

जिन्दगी हर कदम पर परीक्षा बनी।
रात दिन हो गये पालियाँ पालियाँ।

कह रहा हूँ गजल जागरण के लिए
तालियाँ तालियाँ तालियाँ तालियाँ।