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गढ़ू सुम्याल (सुमरियाल) / भाग 1 / गढ़वाली लोक-गाथा

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

खिमासारी<ref>एक जगह</ref> हाट रन्दो, गढ़ू<ref>एक नाम</ref> स्यो सुमन्याल<ref>जाति का नाम</ref>,
मालू<ref>बहादुर</ref> मा को माल होलो, वो सुमन्याल!
तरवर्यिा<ref>तलवार</ref> माल होलू, गढ़ू त सुमन्याल!
जैका बाबू दादान, तरवार मारे,
वेको बेटा भी, तरवार मारी लालो!
खिमासारी हाट मा, पड़े धुरमी<ref>भयंकर</ref> अकाल,
तड़की तड़फी मरीन, लोक उखड़<ref>बिना पानी की जमीन</ref>-सा माछा<ref>मछली</ref>,
जागू<ref>जगह</ref>-जागू पड़ीन, डाला का-सा गेंडा<ref>मेला</ref>!
स्वागीण<ref>सुहागिन</ref> रांड ह्वैन, कोली<ref>गोदी</ref> का मरीन बाला<ref>बच्चे</ref>,
ज्वाती<ref>जवानी</ref> नी भुंचा<ref>भोजी</ref> कैन, जिन्दगीनी भोगी!
तड़ी-तपड़ीकरीं, कमाई सब खाई याले,
भूख मरण लैगे, गढ़ू सुमन्याल-
चल मेरी जिया<ref>मां</ref>, लीला देई,
आरुणी<ref>जंगल का नाम</ref> जंगल जौला, जड़ी-बूटी खौला!
माता लीक तब गढ़ू, माल ऐगे आरुणी जंगल,
जिया लीला देईतब, बोलण लै गए:

कनो कलोबलो<ref>हरा-भरा</ref> वण छ, देखदौं मेरा गढू़,
सुणदौ<ref>सुन ले</ref>, दीपीकोट<ref>एक जगह</ref> मा रन्दो, तुमारो बड़ा<ref>ताऊ</ref> दीपू,
तू लीजा वख<ref>वहां</ref>, मेरी नौ लाख हँसुली<ref>हँसुली, गले का आभूषण</ref>,
अपणा बड़ा<ref>ताऊ</ref> मुँगै<ref>से</ref>, भैंसी लीओ मोल!
आरुणी जंगल मा, दूध पर दिन बितौला!
तिन ठीक बोले मेरी जिया,
धरे गढू़ मालन, नौ लाख हँसुली,
जाई लगै ते, दीपीकोट मा!
ओ मेरी जदेऊ<ref>जयदेव</ref> मान्यान, तुम मेरा बड़ा जी
खिमासारी हाट मा, पड़ीगे अकाल!
मेरी जियान दिने, या नौ लाख हँसुली,
तुम देवा बड़ा जी, मैं भैंसी दुधाल!
दीपू बडान तब, गढू़ की आदर करे खातर
पकाये मालक<ref>बहादुर के लिए</ref>, निरपाणी की खीर।
सुतपुल्या<ref>ताजा</ref> घीऊ<ref>घी</ref> दिने, पौंडल्या<ref>बढ़िया</ref> दई,
खिलाये-पिलाये वैन, गढू़ सुमन्याल!
तब दीपून मन्सूबा ठाणो, मन्त्र किराये,
बुलाया तब वैन, वैका सात लड़ीक,
हे मेरा बेटों, ये मारी द्यान,
नितर<ref>नहीं तो</ref> येई<ref>इसकी</ref> छुटेड़<ref>छूटने वाली, दूध खतम होने वाली, पौंड्डी भैंस</ref>, भैंस क्वी द्यान!
बाटा लैग्या स्ये, दीपू का साती सपूत,
तब बोलदू दीपू, जा मेरा गढ़ू़ माल,
डाँडा<ref>पहाड़ी</ref> मरुढ़ो<ref>छानो, झोंपड़ी</ref> होली, लैंदी<ref>दूध देने वाली</ref> भैंसी!
तब अगाड़ी फुल्डू, बाटा लगे गढ़ू माल,
साती भायों का मन मा, कपट सूझीगे!

गाडीन<ref>लिये</ref> साती, गंगलोड़ी<ref>गगलोंडे, पत्थर</ref> हात,
पर विधाता की, माया देखा,
तब गढ़ू सुमन्याल की, भुजा नलकदाब<ref>फड़कने लगी</ref>,
आँखी फफराँदी<ref>फड़कने लगी</ref>, तब वा वैकी!
क्या जी होई होलो, यो सगुन,
तब घूमीक पिछाड़े, देखद गढ़ू सुमन्याल!
भलू करे भायों, तुमून मैं नी मारयों,
तुम साती भाई मेरा, कौजाड़ा<ref>बगल</ref> मुंगक<ref>के लिए</ref> नी छा!
तब चली गैन, वीं डाँडा मरोड़ी,
दिखाए साती भयोंन भैंसी एक छुटेड़!
या च मेरा दिदा<ref>बड़ा भाई</ref>, भैंसी दुधाल,
सात पथा सबेर देंदी या, सात पथा साँज!
उठै गढ़ू मालन, भैंसी कखरियाली<ref>बगल</ref> धरीले,
रौंड़दों<ref>भागता</ref>-दौड़दो, आरुणी जंगल ऐगे,
ले मेरी जिया, तेरा जिठाणा को दिन्यूँ भैंसो।
तब कायरी<ref>बेचैन</ref> होन्दी, जिया<ref>माँ</ref> लीला दे,
छोड़ दी पथेणा<ref>आँसू</ref> नेतर<ref>नेत्र</ref>।
इना भैंसा मा गै, मेरी नौ लाख हँसुली,
सती होली मैं, आपणी माता की जाई,
सते होला जु, पंचनाम देवता
त ई भैंसी पर, दूद आई जान!
तब आरुणी जंगल वा, जड़ी खलौंदी बूटी,
भैंसी पर दूध, पैदा ह्वैगे!
गढ़ू माल तब, चैन की निन्द सेंद,
भैंसी चरोंद, दूद घुटक पेंद!
आरुणी जंगल होलू, भलो रौंत्यालु<ref>सुन्दर</ref>,

डाँडी<ref>पहाड़ी</ref> -काँठी<ref>चोटी</ref> जनी, मन मोहदी।
गढ़ू सुमन्याल होलू, उलान्या<ref>मस्त</ref> मुरल्या<ref>मुरलीवाला</ref>,
मुरली त होली वैकी, जनी जादून भरी!
तै जंगल मा रन्दी छई, सुरमा एक रौतेली,
रोज मोहन मुरली सुणदी,
मन मा मन्सूबा गणदी<ref>बाँधती</ref>-
इनी तैकी मुरली, अफू<ref>अपने आप</ref> कनो होलू?
तब वींको चित्त, ह्वैगे चंचल, मन ह्वैगे उदास,
दीदी भुल्यों मा, कना वैन बोदी:
जावा दीदी भुल्यों, तुम घर जावा,
मेरी माँ मु बोल्यान, सुरमा बाघन खैयाले।
जावा मेरी दगड्याण्यों<ref>सहेलियों</ref>, तुम घर जावा,
मेरी माँ मु बोल्यान, सुरमा भेल<ref>गिर, पहाड़ से</ref> पड़गे।
जावा मेरी जोड़ी सौंजड्यों<ref>सहेलियाँ</ref>, मैत<ref>मायका</ref> जावा,
मेरी मां मु बोल्यान, सुरमा गाड<ref>नदी</ref> बगगे<ref>बह गयी</ref>।
बाबरो ह्वैगे पराण, मुरल्या की खोज पैठीगे<ref>चल पड़ी</ref>,
मरणू होई जान, मैन मुरल्याक जाणा।
गढ़ू माल होलू, तानियो<ref>मजाकिया</ref> मा को तानी,
सुरमा देखीक, मुरली छिणै देन्द।
नौ दिन नौं रात, ह्वैगीन मुरल्या की खोज,
पर रौतेलीन, कखी मुरल्या नी पायो।
दसवाँ रोज देखेणे, गढू स्यो सुमन्याल,
काँठा मा को-सी सुरीज, शेर को-सी बच्चा।
ढकुली<ref>नमस्कार</ref> ढवौन्दी सुरमा, माथो नवौंदी:
मैं तुमारी राणी छौं प्रभु, तुम मेरा पराणी!
लीगे तब गढू वीं तै, जीया का पास

शब्दार्थ
<references/>