http://kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%97%E0%A4%A4%E0%A4%BF_%E0%A4%94%E0%A4%B0_%E0%A4%AE%E0%A5%83%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A5%81_%E0%A4%95%E0%A5%80_%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%A4%E0%A5%87%E0%A4%82_/_%E0%A4%85%E0%A4%A8%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%A7%E0%A4%BE_%E0%A4%AE%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%AA%E0%A4%BE%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0&feed=atom&action=historyगति और मृत्यु की बातें / अनुराधा महापात्र - अवतरण इतिहास2024-03-29T14:58:48Zविकि पर उपलब्ध इस पृष्ठ का अवतरण इतिहासMediaWiki 1.24.1http://kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%97%E0%A4%A4%E0%A4%BF_%E0%A4%94%E0%A4%B0_%E0%A4%AE%E0%A5%83%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A5%81_%E0%A4%95%E0%A5%80_%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%A4%E0%A5%87%E0%A4%82_/_%E0%A4%85%E0%A4%A8%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%A7%E0%A4%BE_%E0%A4%AE%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%AA%E0%A4%BE%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0&diff=204238&oldid=prevअनिल जनविजय: '{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अनुराधा महापात्र |अनुवादक=उत्पल...' के साथ नया पृष्ठ बनाया2016-06-08T04:02:00Z<p>'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अनुराधा महापात्र |अनुवादक=उत्पल...' के साथ नया पृष्ठ बनाया</p>
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{{KKRachna<br />
|रचनाकार=अनुराधा महापात्र<br />
|अनुवादक=उत्पल बैनर्जी<br />
|संग्रह=<br />
}}<br />
{{KKCatKavita}}<br />
<poem><br />
गहन रात में जब स्तब्ध हो जाते हैं सब<br />
तब ऑफ़ कर दिए गए टी०वी० की स्क्रीन <br />
खुल जाती है।<br />
आह्लादित चूहा ज़हरीले बिस्कुट की पोटली को<br />
किसी परमाणु-वैज्ञानिक की तरह उलटता-पलटता है।<br />
मैं रात से सवाल करती हूँ, <br />
गति क्या है? क्या है जीवित रहना? विस्मय क्या है?<br />
पेट में अण्डे लिए चील<br />
नारियल के पेड़ के ऊपर <br />
ज़ोर से चीत्कार करती है।<br />
शायद वह रात के तापमान का<br />
अन्दाज़ लगा लेना चाहती है,<br />
जन्म देने के क्षण का तनाव।<br />
पानी के भीतर डूबा हुआ साबुन<br />
पानी पर सन्देह करता है।<br />
कारण कि उस पानी से<br />
कोई भी शरीर स्नान नहीं करता। <br />
हेनरी मिलर की चिट्ठी<br />
दीपक मजुमदार के जीवन को नहीं बदल सकी।<br />
मसखरापन और प्यार क्या पूरक हैं एक-दूसरे के?<br />
मृत्यु से भी तेज़ गति से दौड़ता है मन।<br />
अवधूत और राजनीतिज्ञों की समाधियों के अन्तराल में<br />
आधे कपड़े पहनी लड़कियों की साँसें घुट रही हैं।<br />
हाय मध्यवर्गीय, हाय मध्यपन्थी शोक!<br />
उपनिषद और माओ त्से तुंग के<br />
पॉकेटबुक्स संस्करण बाज़ार में बिकते हैं।<br />
रामप्रसाद के मैदान में हैं<br />
लाल-नीले परमाणु-अण्डे<br />
वस्तुतः रात ने इस जीवन को<br />
छिन्नमस्ता की तरह अविराम<br />
प्रतीक में बदल दिया है।<br />
ठीक-ठीक और कितने दिनों तक<br />
हमें जीवित रहना पड़ेगा!<br />
अगले साल के बजट तक?<br />
तब तक क्या पानी की आवाज़ भी<br />
साँप की गति से बहुत दूर सरक जाएगी?<br />
अब भी लगता है कि<br />
अभी-अभी जन्मे समस्त शिशुओं की <br />
आँखों के काजल में<br />
दूर्वादल की कुछ आभा<br />
बारिश की छाया बनकर डोलती है?<br />
<br />
'''मूल बँगला से अनुवाद : उत्पल बैनर्जी'''<br />
</poem></div>अनिल जनविजय