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गति और मृत्यु की बातें / अनुराधा महापात्र

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गहन रात में जब स्तब्ध हो जाते हैं सब
तब ऑफ़ कर दिए गए टी०वी० की स्क्रीन
खुल जाती है।
आह्लादित चूहा ज़हरीले बिस्कुट की पोटली को
किसी परमाणु-वैज्ञानिक की तरह उलटता-पलटता है।
मैं रात से सवाल करती हूँ,
गति क्या है? क्या है जीवित रहना? विस्मय क्या है?
पेट में अण्डे लिए चील
नारियल के पेड़ के ऊपर
ज़ोर से चीत्कार करती है।
शायद वह रात के तापमान का
अन्दाज़ लगा लेना चाहती है,
जन्म देने के क्षण का तनाव।
पानी के भीतर डूबा हुआ साबुन
पानी पर सन्देह करता है।
कारण कि उस पानी से
कोई भी शरीर स्नान नहीं करता।
हेनरी मिलर की चिट्ठी
दीपक मजुमदार के जीवन को नहीं बदल सकी।
मसखरापन और प्यार क्या पूरक हैं एक-दूसरे के?
मृत्यु से भी तेज़ गति से दौड़ता है मन।
अवधूत और राजनीतिज्ञों की समाधियों के अन्तराल में
आधे कपड़े पहनी लड़कियों की साँसें घुट रही हैं।
हाय मध्यवर्गीय, हाय मध्यपन्थी शोक!
उपनिषद और माओ त्से तुंग के
पॉकेटबुक्स संस्करण बाज़ार में बिकते हैं।
रामप्रसाद के मैदान में हैं
लाल-नीले परमाणु-अण्डे
वस्तुतः रात ने इस जीवन को
छिन्नमस्ता की तरह अविराम
प्रतीक में बदल दिया है।
ठीक-ठीक और कितने दिनों तक
हमें जीवित रहना पड़ेगा!
अगले साल के बजट तक?
तब तक क्या पानी की आवाज़ भी
साँप की गति से बहुत दूर सरक जाएगी?
अब भी लगता है कि
अभी-अभी जन्मे समस्त शिशुओं की
आँखों के काजल में
दूर्वादल की कुछ आभा
बारिश की छाया बनकर डोलती है?

मूल बँगला से अनुवाद : उत्पल बैनर्जी