Last modified on 1 सितम्बर 2011, at 21:54

गरमी की लू जमाती 'लप्पड़' करारा सा / नवीन सी. चतुर्वेदी

घनाक्षरी छन्द -
षडऋतु वर्णन -
गरमी की लू जमाती 'लप्पड़' करारा सा


पावस में नाचता है, तन-मन तक-धिन,
शरद का चंद्र लगे, सबको दुलारा सा|

हेमन्त खिलाये गुड - संग बाजरे की रोटी,
शिशिर में पानी लगे, हिमनद धारा सा|

वसंत की ऋतु है जो, कहें उसे ऋतुराज,
धरती की माँग बीच, लगे ये सितारा सा|

हापुस खिलाने हमें, गरमी आती है पर,
गरमी की लू जमाती - 'लप्पड़' करारा सा||