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गरम जमीं पर कल कन जइसन, सुख के छन गुजरल / सूर्यदेव पाठक 'पराग'

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गरम जीं पर जल-कन जइसन, सुख के छन गुजरल
प्रेम-मुहब्बत पीयर पतइन जइसन रोज झरल

गिरगिट जइसन रंग बदलके, कब के मिल जाई
कठिन बतावल, सिंह कवन बा, कवन सियार रँगल

मन का सागर में रह-रह के, तूफानी हलचल
डोल रहल धीरज के नइया, धारा भइल प्रबल

जटिल समस्या सुरसा जइसन लउके मुँह बवले
जनमे से जे मिलल गरीबी, अबले रहल डटल

आसा-टिसुना सोना के मृग जइसन दउड़ रहल
सउँसे जिनगी सपने देखत में दिन-रात कटल

डेगे-डेगे कल-बल-छल के, खेल चल रहल बा
बिहँसे बोतल के आसव अब होके गंगाजल