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गरि परवत से चलल माता कोसिका / अंगिका

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

गिरि परवत से चलल माता कोसिका, चलि भेलै गंगा स्नान
घड़ी एक पहुँचवै माता कोसी गंगा घाट ।
निशि भाग राति माता कोसिका करै छियै किलोल,
से लावू नैया दियौ गंगाजी के घाट पर ।
से माता निशि भाग राति में
किए करै छै किलोल
की छियै दैतनी-की छियै भूतनी ।
नै छी हम दैतनी, नै हम भूतनी,
जाति के हम छी बाम्हन,
बाप राखलक कोसिका नाम ।
कल जोड़ि माता करै छी परनाम
टुटले नैया टुटले पतवार ।
कोना करब गंगा के पार ।
सोना से मढ़ाय देवौ दूनू मांगि,
रूपा से मढ़ेबो करूआरि
सात दिन सात राति माता कोसिका
झलहेर खेलवैये ।
सात दिन सात राति माता कोसिका
खेललो झलहेर,
से मांग रे मलहा इनाम ।
जो लागि कोसिका ने करवे सत परिनाम,
तो लागि नै मांगवो इनाम ।
एक सत के लिये दोसर सत केलियै
तेसर सत केलियै परिनाम
घर में माता छै अंधी
बुढ़िया नाच हमरा पद बांझ दे छोड़ाय
माता के हेतो आँखि दई लोचना
तोराके बांझ पर देव छोड़ाय
कल जोड़ि मिनती करै छी माता कोसिका,
रन बेरि कोसिका होहु ने सहाय ।