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गरीबा / गहुंवारी पांत / पृष्ठ - 3 / नूतन प्रसाद शर्मा

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कथय गरीबा -”मोरो ला सुन, तंय हा जानत सब सिद्धान्त
पूंजीपति के परिभाषा अउ, ओकर जीवन कर्म विचार।
बंजू मन हा गलत दिशा पर, धोखा देखत धोखा खात
एमन ला तंय रद्दा पर कर, तोला नेमत समझ समर्थ।”
चना रखे बर चलत गरीबा हवय तड़तड़ी बेरा।
ओहर अपन खेत मं पहुंचिस जानत उहां के चाला।
चना के फर हा फरे हे लटलट, अंदर के दाना हे पोख
पेटमंहदुर जब सक भर जेवत, पेट हा तनथय गोलमटोल।
पेड़ हा फर ला यदपि सम्हालत, मगर बोझ मं केंघरत खूब
पाना कुछ हरियर कुछ पिंवरा, तरी डहर खोंगसत हे डार।
झाला बने तिकोना एक ठक, जेमां टट्टा पत्ता छाय
कोदो पयरा बिछे हे अंदर, वातावरण गरम बन जाय।
झाला के तिर गीस गरीबा, आगू मं सिपचाथय आग
दरी बिछा के तिर मं बइठिस, थोरिक रहिके आगे रात।
होरा भूंज मुसुर मुस खावत, चना गंहू ला रंमजत फोर
जहां पेट हा दलगिरहा अस, तभे खवई ला करथय बंद।
गावत हवय ददरिया सुर कर, हो हो हात हात चिल्लात
आग बुझिस तंह जाड़ बियापत, उरसा दरी ला ओढ़िस खींच।
आवत जम्हई नींद हा चमकत, उसल गरीबा टहलत खेत
प्रेमचंद के “हल्कू’ नोहय, जे बूता तज सुतय बिचेत।
जे दिन कृषक हा मिटका सुतही, तज पुरुषार्थ काम ला छोड़
दुनिया धारोधार बोहाहय, जीवन चलत तेन हा लाश।
सीमा रक्षा करथय सैनिक, उसने ए बिरता रखवार
ओरखिस कुछ आवाज गरीबा, टंहकत टंच होत तैयार।
उरउर कर बरहा दल निंगतिस, राहिद उड़तिस ठाढ़े खेत
टोंटा फार गरीबा हांकिस, बरहा मन पर परय प्रभाव।
हुरहा डर के बरहा भागत, पर थमगे अंड़ियल नर एक
मुड़ ला निहरा तान के खीसा, बढ़िस गरीबा तन अरि देख।
भिम करिया ताकत फुर्तीला, बिकट निघरघट हिम्मत खान
दउड़ गरीबा ला पहटातिस, हटिस गरीबा जान बचाय।
बरहा दूर भाग के लहुटिस, ताकत लगा उधेनिस ताक
खेत के रक्षक बच नइ पाइस, ऊपर उड़के गिरिस दनाक।
उठिस गरीबा बरन चढ़ाके, जोश हा बाढ़त बाघ समान
झाला अंदर दउड़ के अमरिस, धरहा टंगिया ला धर लैस।
बरहा हा फिर तिर मं पहुंचिस, भिड़िस गरीबा बरहा साथ
टंगिया उठा के बल भर मारिस, होय शत्रु के बिन्द्राबिनास।
उद नइ जरा सकिस एक टंगिया, बरहा दउड़िस अउ कर जोम
तब फिर काबर हटय गरीबा, अपन देह ला देवत होम।
गदामसानी पटका पटकी, एक के ऊपर अन्य सवार
एकोकन अराम नइ लेवत, करत हवंय दुश्मन ला मात।
बरहा घायल घाव पिरावत, लहू गिरत अउ मरत थकान
आखिर जान बचा के भागिस, पीठ देखा के तज मैदान।
घायल होय गरीबा हा खुद, पल पल बाढ़त घाव के पीर
सांस हा धुंकनी असन फेंकावत, कहुंचो जाय खतम सब जोश।
रुकिस गरीबा बड़े फजर तक यद्यपि तन भर पीरा।
बाद अपन घर जाथय तंहने दुखिया हा घबरागे।
पूछिस -”तोला कोन दमोरिस, सुनंव भला दुश्मन के नाम
लहू चुहक के सेठरा करिहंव, रस चुहका सेठरावत आम।”
जब कई बखत पूछथय दुखिया, तंहा गरीबा सच कहि दीस-
“दूसर ऊपर शंका झन कर, मंय हा स्वयं करे अपराध।
होय वन्य प्राणी हा रक्षित, ओकर पर झन होय प्रहार
शासन हा कानून बनाये, जमों व्यक्ति के इहिच विचार।
लेकिन मंय हा करे उदेली, बरहा ला घायल कर देंव
कथनी मं हम बनत संरक्षक, पर करनी मं हिंसक आन।
मगर मोर पर हमला करदिस, बदला मं मंय युद्ध करेंव
अपन सुरक्षा बर झगड़े हंव, एकर कारन मंय निर्दाेष।”
दुखिया घाव के रकत ला धोइस, खुद भिड़ के करथय उपचार
करिस गरीबा हृदय ला कट्टर, सहत हवय चुप दरद अपार।
दवई लगात दवई तक खावत, माड़त पीर भरत हे घाव
दुखिया अउर गरीबा, दूनों, गूढ़ रहस्य करते हें बात।
दुखिया बोलिस -”तंय सच फुरिया – तुम धनवा के करत विरोध
तुम पूंजीपति मन ला देवत, अत्याचारी शोषक रुप।
ऊंकर सत्य चरित्र ला गोठिया – प्रतिभाहीन घृणित बेकार
अनुकरणीयहीन या स्वार्थी, खलनायक अस अवगुण खान?”
कथय गरीबा -”पूंजीपति मन, अपन लक्ष्य पर रखत इमान
मात्र कर्मनिष्ठ होथंय तब, आत सफलता ऊंकर हाथ।
महिनत करथंय उन्नति खातिर, असफलता ला शत्रु बनात
ओमन लफर लफर नइ लूवंय, कर्म बुद्धि ले बनथंय श्रेष्ठ।
जेहर बइठे ऊंचा पद पर, या फिर दूसर ले विख्यात
एकर अर्थ योग्य हे ओहर, अनुकरणीय हे ओकर काम।
लेकिन उंकर विरोध ला करथन, एकर कारन सुन ले साफ-
स्वार्थ पूर्ति बर पूंजीपति हा, पर के हित के करथय हानि।
मीठ बात कर दिग्भ्रम करथय, ताकि ढंकाय स्वयं के पोल
खुद ला आसमान तक लेगत, पर ला गाड़त नरख पताल।”
इही बीच धनवा हा पहुंचिस, जेकर मुंह पर मित्र के भाव
हाथ मिलात गरीबा के संग, हृदय कलुष के भाव ला फेंक।
ओकर स्वागत करत गरीबा, दुरिहा फेंकिस मन के रंज
सहपाठी हा खुद आए तब, बात करत दूनों झन हांस।
खेत के बात ला धनवा जानत, करत गरीबा के तारीफ-
“तंय हिम्मती बुद्धिशाली अस, आत्म सुरक्षा ला कर लेस।