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गरीबा / गहुंवारी पांत / पृष्ठ - 8 / नूतन प्रसाद शर्मा

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नाम “रमेश अधीर’ ए कवि के, जेहर बसथय कोण्डागांव
ओहर कविता ला पढ़थय तब, श्रोता करत प्रशंसा खूब –
कोठी भर भर जे छलकाइन, खोंची बर खड़े मुहाटी में।
पसिया मांगत करन फिरत है, छत्तीसगढ़ के माटी में।
जुच्छा पेट सुन्ना अगास हे, जेमा भूख सुरुज के गोला
पीरा के जठना मं लांघन, अंगरा ओढ़े कोंवर चोला
करजा गर फांसी होगे, आगी लगगे घांटी में।
पसिया मांगत करन फिरत हे, छत्तीसगढ़ के माटी में।
आस के चंदन धुर्रा बनगे, कांटा बांटा जिनगी के
चांउर नैन बर सपना होगे, दर्शन मिले न कनकी के
मनखे तन कठवा के पुतरी, बिपत के ढेरा आंटी में।
पसिया मांगत करन फिरत हे, छत्तीसगढ़ के माटी में।
हंड़िया सुरता करके रो दिस, बीते दिन ला सीधा संग
राम लखन कुरिया ला छोड़िन, गांव ले निकलिन सीता संग
सांस के गठरी बांध के चल दिन, घर के दुख संग काठी में।
पसिया मांगत करन फिरत हे, छत्तीसगढ़ के माटी में।
दानेश्वर शर्मा कवि ऊचा, बसथंय पद्यनाभपुर दुर्ग
कविता हेर पढ़त हे सुर धर, वाह वाह बोलत हें लोग।
मइके ल देखे होगे साल गा,
भइया तुमन निच्चट बिसार देव
बहिनी के नइये खियाल गा।
कनकी अस कइसे निमार देव।
गंगा के धारा हा कइसे उलटिस भइया
लहू के नता हा कइसे टूटिस भइया
मया हा मोरेच बर कइसे खंगिस भइया
चिट्ठी के परगे अकाल गा।
दाई के खांसी हा माड़िस – नइ माड़िस गा
ददा के रोगहा जर छांड़िस – नइ छांड़िस गा
तोर छोटे बाबू हर बाढ़िस – नइ बाढ़िस गा
बस्ती के बता सबो हाल गा।
आंसों मोर गंगाजल तीजा रिहिस होही
फागुन मं ओकर पठउनी होइस होही
आहूं केहे रेहेंव, रद्दा देखिस होही
घुस्सा मं होइस होही लाल गा।
मोर सेती ददा के पैलगी कर लेबे
मयारुख दाई के आसिस मां तर लेबे
दूनों भतिजवा के चूमा तैं कर लेबे
भउजी के छूबे दूनों गाल गा।
कवि मन कविता पाठ खतम कर सब ले पैन प्रशंसा।
सुनत सुनावत टेम खसकगे तभो बुतत नइ हाही।
श्रोता जमे मंच के तिर मं, कुछ सुरता नइ खेत कोठार
कवि मन करिन प्रार्थना तंहने, श्रोता मन रेंगिन मन मार।
ग्रामीण चहत – देन हम रुपिया, पर कवि मन कर दिन इंकार
बोलिन – अपन गांव आये हन, काबर लेगन धर के कर्ज!
सुम्मत राज ध्येय जब पूरा, तभे मनाबो हम तिवहार
पेटमंहदुर बन कोंहकोंह खाबो, लहुट जबो धर कड़कड़ नोट।”
जय जोहार – कर कवि मन रेंगिन, मन गुप्ती मं धर के प्रेम
अपन अपन घर मनखे जावत, नव उमंग धर धर के रेम।
कुछ दिन बाद ओन्हारी पकगे, सुंट बंधगे मजदूर किसान
केन्द्रीय शक्ति बली होथय कहि, एक साथ भिड़ लगिन कमान।
चना गंहू अरसी ला काटिन, राखिन एक ठन जबर कोठार
फसल ला मींजत ओसरी पारी, बाद ओसाइन सूपा धार।
डुठरी ला कोटेला कुचरिन, तब घोटरे अन बाहिर अैरस
घेक्खर बण्ड खात रहपट तब, सम्मुख ढिलथय वाजिब तथ्य।
बन्दबोड़ हे जंगल तिर मं, ओकर पास हवय बन्छोर
आय ऐतहासिक स्थल तब, नाम उदगरत हे विख्यात।
कई पथरा के मूर्ति उहां पर, एक मूर्ति हा भव्य विशाल
मनखे उंकर मान पूजा कर, पात अपन मन सुख संतोष।
डकहर सुखी घूम लिन जंगल, तेकर बाद गीन बन्छोर
देख निझाम जगह पबरित अस, बइठ दुनों झन करत सलाह।
डकहर कहिथय -”जमों कृषक मन, राह चलत हें सुम्मत बांध
सब बिरता ला मींजिन कूटिन, एक जगह पर रखिन सकेल।
एकर मतलब साफ समझ तंय – होत संगठित सब ग्रामीण
धनवा पर अब धावा चढ़िहय, ओकर शासन करे समाप्त।”
बोलिस सुखी -”उचित बोलत हस, धनवा के भावी अंधियार
यदि धनवा ला संग देवत हम, गंहू के संग मं कीरा जान।
धनवा पहिलिच ठोंक बता दिस – जब परिवर्तन अै स समाज
मध्यम वर्ग मरिस हे पहिली, बाद गिरिस शोषक पर गाज।