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गरीबा / गहुंवारी पांत / पृष्ठ - 9 / नूतन प्रसाद शर्मा

क्रांति के भेद समझ के अब हम नइ तो खावन माछी।
धनवा ले सम्बन्ध टोर के – जन के पीयन मानी।
जनता जइसन जेवन करिहय, हम्मन जेबो उहिच समान
ओकर तोलगी ला यदि धरबो, निश्चय बचा सकत हम प्रान।”
डकहर राखत प्रश्न सुखी तिर -”पर शंका ला तंय कर दूर
हम धनवा के छांय असन अन, सदा रहत हन ओकर साथ।
पर अब ओकर संग ला छोड़त, हम दूसर के पकड़त बांह
सच मं हमर कोन – हम काकर, हमर कोन अरि – कोन मितान?”
किहिस सुखी -”सिद्धान्त हमर सुन, आय हमर बर ओहर शत्रु
घाटा खतरा दण्ड ला देवत, यने हमर हित कर नइ पाय।
हमर मित्र हा हमला देवत – लाभ सुरक्षा स्वार्थ इनाम
यने हमर हित के रक्षक ला, हम मानत हन ईष्ट समान।
अब मंय निर्णय साफ देवत हंव – हम तुम दुनों पूर्व अस एक
पर धनवा ले दूर रहन हम, अब नइ देखन ओकर द्वार।”
दुनों सुंटी बंध – बात गुप्त रख, लहुट अैअन सुन्तापुर गांव
धनवा के हालत ला देखिन, वास्तव मं होवत हे पश्त।
धनवा लरथराय बिन मनखे, कोनो नइ देवत सहयोग
नौकर काम करे बर छोड़िन, अब डांटत फिक्कर के रोग।
धनवा अन्य गांव जावत पर, ओमन ठेंगवा देखा भगात
एक देश के निज बाते पर, दखल करय नइ दूसर देश।
डकहर सुखी पक्षधर तेमन, मुंह कर करूभगत हे दूर
धनवा हीन हवय ऊंकर बिन, कनिहा टांठ परत हे लोच।
पता चलिस के अब दूनों झन, जनता साथ मिला लिन हाथ
क्रांति के बाजा बजा इही मन, सब झन ला करिहंय सावचेत।
पर बन्जू हा गर्व मं अंइठत, चेथी कोती रखे दिमाग
खुद ला पूंजीपति समझत हे, खुद ला समझत सब ले ऊंच।
मेहरूहा बन्जू ला बोलिस -”कतको साफ करत हें खेत
पर बन दूबी हा बच जावत, ओहर फसल ला करथय नाश।
डकहर सुखी राह पर आगें, ओमन देत क्रांति ला साथ
पर तंय रहड़ा बन के कूदत, यदपि रखे हस भ्रम ला पाल।
तंय हा हमर ले धनवन्ता अस, पर तंय पूंजीपति नइ आस
पूंजीपति के व्याख्या करथंव, ओला तंय हा सुन कर चेत-
ओमन कतको खर्चा करथंय, पर नइ होय कभू कंगाल
बड़े रोग हा तन मं सपड़त, ऊंकर धन नइ होय समाप्त।
ओमन अप्रत्यक्ष ए शासक, शासक तक ला लेत खरीद
शिक्षित उच्च – बुद्धि ऊंचा मन, मंगत जीविका ऊंकर पास।
यद्यपि ओमन आर्थिक मुजरिम, पर नइ बनंय कभू अभियुक्त
दुनिया घूम करत हें खर्चा, पर धन वृद्धि ऊन के दून।”
मेहरूहा बन्जू ला बोलिस -”मितवा, तंय अस जन सामान्य
हम सामान्य जीव अन तब तंय, हमर मदद ला कर बिन भेद।”
बन्जू के भ्रम हा मिट जाथय, कहिथय -”तंय बोलत सच तथ्य
वास्तव मं हम पूंजीपति नइ, धन हा कभु हो जाहय नाश।
यदि अकाल मं फसल भुंजावत, शासन तिर हम मंगथन भीख
अपन पुत्र ला बांटा देवत, तंहने हम होवत कंगाल।”
बन्जू हा मेहरूला बोलिस -”मोर पास जतका धन चीज
मंय हा गांव ला अर्पण करथंव, क्रांति ला मंय देवत हंव साथ।”
सुघर बात सुन मेहरूहर्षित, मिहनत आज सफलता पैस
बन्जू ठीक राह पर लगगे, निश्चय पूरा सब उद्देश्य।
हरहर हरहर हवा चलत अब, गिरत पेड़ के सुखा के पान
लगथय – पूंजीवाद हा मरिहय, भट के सत्तारुढ़ समाप्त।
होली परब आय हे लकठा, चलव मनान सुंटी ला बांध
बाद मं लड़बो छोर कछोरा, पर अभि खेलन प्रेम के रंग।
जेला जोहत एक बछर तक, अभर गीस उत्सव के रात
“होली हे’ लइका चिल्लावत, घर घर ले मंग लकड़ी लात।
“चोरी झन हो’ कहि बुजरुक मन, ताका करत – करत हें जांच
पर रापा खरिपा हा चलदिस, टुरा चोरा के मारत टेस।
जेन मेर “होली’ हा बरिहय, मनखे बइठ गीन मन मार
ओतिर लकड़ी के गांजे ढिक, जेहर गोला कामिल कांड़।
बुजरुक मन लकड़ी ला देखिन, तंहने होवत हें सन सांय
देत युवक मन ला समझउती -”बेढंगा अस होवत काम।
यह इमारती लकड़ी ला तुम, बिन सुल बारत अबुज समान
लकड़ी बचा रखव भावी बर, कतको ठक बन जहय मकान।
जंगल धंसा तिहार मनायेन, चिखना परत दुखद परिणाम
वायु प्रदूषण रोग अस बाढ़त, ठीक समय नइ बरसा घाम।
पूर्व कुजानिक करे हवन हम, जानबूझ माछी झन खाव
धरती माता ला हरियर रख, खुद भावी ला सरग बनाव।”
उंकर सलाह जंचिस तंह रखदिन हेर के कामिल लकड़ी।
रांई झुरी जलऊ लकड़ी ला रचत हवंय गोलिया के।
बांस घंसर के आग दगाथंय, बाद ढिलिन लकड़ी मं आग
जरत बरत होलिका पापिनी, अत्याचार के पाग समाप्त।
मनसे लीन राख के टीका, एकर बाद छोड़दिन ठौर
घर मं पहुंच रुसुम ला फोरत, अउ “प्रहलाद कथा’ ला कान।
आज आय होली के उत्सव, सबके मन मं भरे उमंग
कते मित्र अउ कते हे दुश्मन, कोन बतान सकत हे भेद!
परसा फूल टोर के लानिन, गघरी मं ओइरिन सब फूल
ओकर साथ नाय हें पानी, गघरी ला चूल्हा रखदीन।
धकधक आगी हा धधकत हे, खउलत जल के संग मं फूल
जहां फूल के रंग हा ओगरिस, देखव बनगे पक्का रंग।
ओकर साथ बनत पिचकारी, ठाहिल बांस के पोंगरी आय
कतको रंग भरय पिचकारी, लेकिन झटका ला सहि जाय।