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गरीबा / चरोटा पांत / पृष्ठ - 14 / नूतन प्रसाद शर्मा

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बुस्ता ला धर लीस गरीबा, कूदत निकल जथय घर छोड़
धनवा घलो आय सहपाठी, तेकर घर मं बिलमिस गोड़।
सोनू अपन पुत्र धनवा ला, देत ताड़ना तिर मं रोक-
“बेटा, मंय हा जउन बतावत, राख सुरक्षित अंतस- टोंक।
ज्ञान पाय शाला मं जावत, उहां उपस्थित कई झन छात्र
उंकर साथ हंस – खेल – मजा कर, पर अस्मिता अलग मं राख।
उनकर स्तर निम्न – गिरे अस, तन के घिन मिन – दीन – दलिद्र
तंय सम्पन्न – धनी के बेटा, तोर ओहदा – पद हा उंच
छात्र साथ तंय प्रेम बना रख, मुह ले हेर शहद अस बोल
पर वास्तव मं होय दिखवा, अंदर ह्मदय घृणा ला राख।
फिल्म के नायक बहुत सयाना, जेहर चलत कपट के चाल
पर्दा मं पर के मदद करथय, रोथय पर के दुख ला देख।
पर वास्तव मं मदद ले भगथय, पर के दुख ले बेपरवाह
अभिनय करे रथय सर्वोत्तम, फूले रथय ह्मदय के फूल।
तंय शाला जा ज्ञान पाय बर, गठिया राख मोर सब सीख
तब जीवन भर छुबे सफलता, कठिन राह ले लगबे पार।”
बुजरुक हा केंवरी माटी ला देवत गलती शिक्षा।
तभे मनुष्य के बीच विषमता होथय युद्ध – लड़ाई।
वर्तमान मं धनवा नानुक, कान देत नइ ददा के बात
पर भविष्य मं निश्चय धरिहय, ददा किहिस ते गलती राह।
देखत हवय गरीबा बोकबोक, कुछ समझत-समझत नइ आध
लेकिन असर अवश्य बतावत, तब मुंह पर परिवर्तन – भाव।
धनवा मनगभरी अस निकलिस, बस्ता ला धर बाहिर पार
धरिस गरीबा के अंगरी अउ, जावत पढ़े कदम्मा मार।
एमन सड़क के पास मं पहुंचिन खावत चरबन-दाना।
लड़की मन हा फुगड़ी खेलत- गावत सुर से गाना।

गोबर दे बछरु गोबर दे
चारों खूट ला लीपन दे
चारो देरानी ला बइठन दे
अपन हा खाथय गूदा गूदा
मोला देथय बीजा बीजा
ऐ बीजा ला काय करिहंव
रहि जाहंव तीजा
तीजा के बिहान दिन
सरी-सरी लुगरा
कांव – कांव करे मंजूर के पीला
हेर दे भउजी कपाट के खीला
एक गोड़ मं लाल भाजी
एक गोड़ म कपूर
कतेक ला मानों मंय देवर – ससुर
फुगड़ी रे फुन
फुगड़ी रे फुन

शाला के घण्टी हा बाजिस, भगिन छात्र मन गुण अमराय
उहां बइठथंय पास मं घंसरत, धनी – दीन सब एक समान।
शिक्षक मिलतू सीख देत सम, सब ला हांकत लउठी एक
छात्र लड़त तंह फिर मिल जावत, भूलत तुरुत शत्रुता बैर।
इही बीच एक घटना घटगिस, धनसहाय के गुम गिस पेन
ओहर मिलतू गुरु ला बोलिस – “मोर समस्या ला सुलझाव-
मोर पेन हा कहां गंवा गिस, ओला मंय खोजत हंव खूब
पर ओकर दउहा नइ पावत, कामें लिखंव उमंझ नइ आत!”
मिलतू हा सब छात्र ला बोलिस – “भाई बहिनी अस तुम आव
एक दूसरा के शुभचिंतक, मोर मान लव नेक सलाह-
धनसहाय के पेन गंवा गिस, तुम्मन खोजव कर के यत्न
यदि कोई ला पेन हा मीलय, धनवा के असलग मं देव”
कथय गरीबा, – प्रश्न रखत हंव, ओकर ज्वाप देव तुम खोल
यदि एको झन पेन पाय तब, ओहर पाय मुफ्त मं लाभ।
ओकर बात गुप्त हे अब तक, सब के नजर मं मनसे नेक
घाव के मूड़ी बंद हे तलगस, बाहिर तन नइ बहय मवाद।
अगर पेन ला लहुटा देहय, ओकर एक पेन के हानि
ऊपर ले बदनाम हो जाहय, सब के नजर मं घालुक चोर।
अब तुम हा बताव ठोसलग अस – जउन पाय धनवा के पेन
ओहर कार जिनिस लहुटावय, यदि लहुटात बड़े तब भूल?”
मिलतू किहिस – “तर्क हे उत्तम, ओहर पाय नगद अस लाभ
पर वास्तव मं हानि बहुत ठक, मंय बतात हंव बिल्कुल साफ –
मान लेव “क” पेन पाय हे, लुका के राखत खुद के पास
ओकर नीयत गिरतेच जाहय, पर के जिनिस मं लालच खूब।
फोकट पाय यत्न ला करिहय, मगर कर्म ले भगिहय दूर
कर्महीन “क” हा हो जाहय, ओहर सदा दुसर बर भार।
अगर जिनिस ला लहुटा देवत, ओकर सबो डहर सम्मान
महिनत के आदत हा बनिहय, बढ़ही खूब आत्मविश्वाास।