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गरीबा / चरोटा पांत / पृष्ठ - 16 / नूतन प्रसाद शर्मा

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सनम निकालिस तुरुत एक चिट, ओमां धनसहाय से नाम
सुखी कथय- “अब पूर्ण तोर मन, गीस गरीबा तोर विपक्ष।
तुम धनसाय एक बन खेलव भेद ला डारो लद्दी।
दूसर डहर गरीबा अउ मंय खेलन छोड़ के बद्दी।
धनवा कथय- “बेर झन होवय, खेल शुरु हो जाय तड़ाक
पहिली दामा कोन हा लेवय, एकर बात साफ कर देव?”
कथय गरीबा- “चिट हा निकलिस, पूर्ण होय तब मंसा तोर
अब हमला दामा लेवन दव, दुनों पक्ष के सम अधिकार।”
बोलिस सनम-”हुंकी हम देवत, हमरे दलके मोंगरा नाम
तुम्हर दल के गोंदादल सुन, अंतः ह्मदय करो स्वीकार”
खेल ला शुरु करिन जम्मों मिल, सुखी रखिस गिल्ली ला भूमि
ओकर छुचकी भाग ला जोखिस, लउठी मं कंस के रचकैस।
गिल्ली हा सनसना के उड़गे, आगू डहर सनम हे ठाड़
करिस यत्न गिल्ली झोंके बर, पर असफल चल दिस सब यत्न।
आखिर गिल्ली गिरिस भूमि पर, सनम हा उठवा लिस तत्काल
फेंकिस गोल घेर के अंदर, उहू लक्ष्य रहि गीस अपूर्ण।
धनवा रिहिस गोल के अंदर, गिल्ली तूकत खोल के आंख
पर गिल्ली हा तीर अैस नइ, बोचक उड़ागे दूसर ओर।
सुखी खड़े घेरा के बाहिर, गिल्ली ला रोकिस फट मार
गिल्ली हा जमीन पर गिर गिस, गोंदा दल हा पावत जीत।
सुखी गरीबा दामा लेवत, दामा देत सनम धनसाय
धनवा कहिथय –”काय करन अब, धुंकनी असन चलत हे सांस।
तोर उदारता लैस मुसीबत, गोंदादल ला दामा देन
ओहर अब तक रगड़ा टोरत, हम तुम कुटकुट ले थक गेन।
तंय हा हेर उपाय उचित अस, हम पारी ला झपकुन पान
गोंदा दल अस दामा लेवन, हमर सिरी हा ऊपर जाय।”
धनवा अपन गड़ी ला बोलिस, सुनत गरीबा रोकिस खेल
धनवा मन ला समय देत अब, टूटय झन आपुस के मेल।
बोलिस- “गांव के हम भाई अन, हमतुम कपट भेद ले दूर
तुम्मन अब निराश झन होवव, चलव तुमन भी दामा लेव।”
धनवा हा जंह दामा पाइस, गिल्ली ला रटरट रचकैस
सुखी गरीबा गिल्ली झोंकत, पर आखिर मं पावत शून्य।
मुचमुच हंसत सुखी हा बोलिस- “भुखहा ला जेवन मिल जाय
ओहर जेवन गटगट लीलत, थारी तक ला चाबत खूब।
धनवा ला दामा का मिल गिस, हमर जान लेवत कर तंग
सोग मरत नइ हम दूनों पर, देखत हे बस अपन अनंद।
धनवा हा मुसकावत बोलिस – “तुम झन होव व्यर्थ परेशान
सनम ला मंय गिल्ली देवत हंव, उहू ला दामा लेवन देव।”
सनम हा भिड़ के दामा लेवत, इसने कटिस बहुत अक टेम
सनम हा गिल्ली हा रचकाइस, ओहर उड़िस सनसना खूब।
आगू खड़े सुखी हा तूकत, गिल्ली झोंक लीस कुछ कूद
जमों मितान होत अब हर्षित, थपड़ी पीटत भर के जोश।
ठीक बखत मं खेल खत्म तंह, अपन मकान लहुट गिन छात्र
एको झन ला चोट परिस नइ, सकुशल बचिस जमों के देह।
ओ मनखे के जनम अबिरथा जउन अपढ़-अज्ञानी।
ओकर उंचहा दृष्टिकोण नइ-मेचका के जिंनगानी।
जे मनसे श्रमखेल मं भिड़थय ओकर तन हा लोहा।
मान प्रतिष्ठा मिलत सबो तिर-हिम्मत बढ़थय दूना।