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गरीबा / चरोटा पांत / पृष्ठ - 3 / नूतन प्रसाद शर्मा

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केड़ू हा सुद्धू ला बोलिस -”तोर नाम होवत बदनाम
तंय हा सबले दोषी मनखे, पर तंय जमों बात ला भूल।
बस बालक के रक्षा ला कर, ओला खुद कर रख के पाल
अंतिम बखत के लउठी बनिहय, मदद के ऋण ला देहय छूट।”
मुटकी किहिस -”मंहू मानत हंव-केड़ू हा बोलत हे ठीक
हम मानव पशु पक्षी पालत, उंकर साथ मं स्नेह दुलार।
यदि ओमन बीमार परत हें, उंकर करत सेवा उपचार
याने उनकर कष्ट हरे बर, हम रहिथन हर क्षण तैयार।
तब ए शिशु मानव के कंसा, एला तंय कभु झन दुत्कार
एकर जीवन के रक्षा बर, अपन धर्म के रक्षा राख।”
सुद्धू हा सांत्वना पैस तंह, ओला मिलिस खुशी संतोष
सुद्धू किहिस – “मोर ला सुन लव, तज आलोचना सब तारीफ।
शिशु के मंय सेवा बजात हंव, पर ए मरत खूब जम भूख
एकर पेट पोचक के घुसरे, रहि रहि करथय करुण विलाप।”
कथय सुकलिया -”जान लेंव मंय, लइका ला ब्यापत हे भूख
ओला मोर गोद मं देवव, पिया दुहूं मंय सक भर दूध।”
लीस सुकलिया हा बालक ला, लुगरा मं रखलिस मुंह ढांक
तंह बालक हा दूध ला पीयत, पेट भरिस तंह सोसन शांत।
किहिस सुकलिया हा सुद्धू ला – “लइका हा जब भूख मं रोय
मोर पुकार ला करबे तंय हा, ओला पिया दुहूं मंय दूध।”
केड़ू हा सुकलिया ला बोलिस -”तंय हा करे हवस उपकार
एहर सच्चा धर्म आय सुन, बालक के दूध दाई आस।
बालक ला तंय दूध पियाबे, बचा के रखबे ओकर प्राण
मानवता के रक्षा होहय, प्राणी मन पर हे अहसान।”
कथय सुकलिया -”मोर बात सुन – मंय नइ चहंव मान यशगान
मोर हवय एक बालक सुघ्घर, ओला मंय पियात हंव दूध।
ओकर साथ यहू लइका ला, पिया दुहूं हरहिंछा दूध
देखरेख ला सुद्धू करिहय, सच मं उही हा पालक आय।”
अब मनसे मन उहां ले लहुटिन, सुद्धू हा बंधाय हे प्रेम
शिशु के रक्षा करत हे ओहर, इसने निकलिस कुछ दिन रात।
एक दिन सुद्धू खेत ले लहुटत, तब अंकालू हा मिल गीस
अंकालू हा ठट्ठा मारिस -”दुर्लभ होगे दर्शन तोर।
लगथय-तंय लइका ला राखत, ओकर सेवा करथस खूब
ओकर तबियत अभि कइसे हे, क्षेम खबर ला फुरिया साफ?”
सुद्धू कथय -”कुशल हे बालक, तोर कृपा बस तोर प्रयास
तंय ओकर उपचार करे हस, तभे बचे हे ओकर जीव।
तोर राह पर मंहू चलत हंव, लइका ला राखत हंव पाल
यदि एको छिन दूर रहत हंव, मन हा अकुला जाथय खूब।
थोरिक पहिली खेत गेंव मंय, उहां रिहिस हे गंज अक काम
पर बालक के याद हा आइस, तंहने लहुट जात घर कोत।”
अंकालू हा हंस के बोलिस -”तोला झींकत पुत्र के प्रेम
अपन मकान रबारब जा तंय, ओकर सेवा कर तंय नेम-
शिशु के पालन होत कठिन मं, बड़े परीक्षा एहर आय
पर तंय सफल होत हस मितवा, एकर फल मं मिलिहय मीठ।”
अंकालू हा अपन राह गिस, सुद्धू खबखब पांव बढ़ैस
ओहर अपन ठिंहा मं अमरिस, पहुंच गीस बालक के पास।
छोकरा चमक उठे हे हुरहा, रोत नयन-जल बाहिर आत
सुद्धू पुचकारत दउड़िस अउ, चुमुक उठा लिस नानुक बाल।
बालक पवई हा मंहगा परगे, परिस चिची पर बथबथ हाथ
घिनमिन करत नाक भन्नावत, तंहने खुद हंस-पीटत माथ।
कथरी जठा-पुनः ढलगा अब, सुद्धू गंदला करथे साफ
कउनो काम तियारत नइ पर-मया हा खुद देवत आदेश।
पिता पुत्र मं चलत अइसने सुघ्घर गदामसानी।
पौधा क्रमशः बढ़थय तिसने मंय सरकात कहानी।
मुरहा ला भुरियाय ददा हा गावत सुर धर गाना।
कहां लुका गेंव सुवा ददरिया कहां बिस्कुटक हाना।
बालक के मुंह देखत सुद्धू, बोलिस -”मोर मयारु फूल
तोर नाम मंय धरे चहत हंव, आय समय उत्तम अनुकूल।
राम कृष्ण ध्रुव राख सकत हंव, पर ए कारण अरझत बात-
ओमन कुंवर बड़े अदमी के, गरीब-जिनगी संग का साथ!
परे डरे अउ हिनहर निर्बल, सब संग चलबे देख अगोर
झन असकटा बतावत हंव सुन-फोरत नाम “गरीबा’ तोर।
पुत्र हा सोय बाप के कोरा, तुलुल मुलुल कर गोड़ हलात
मुड़ी हलात आंख मटकावत, मानो नाम करत स्वीकार।
दिन अउ रात नियम बंध चलथंय, बइठ पांय नइ गाड़ के खाम
बढ़त गरीबा घलो समय संग, करत ददा के नींद हराम।
जब टिकटाक चले बर धरथय, अंदर कहां रहत थिरथार!
सुद्धू हलाकान हो दउड़त, पावत नइ उदबिरिस के पार।
चिमटत कभू-दुलारत कुछ रुक, क्रोध मया उपजत एक साथ
अगर गरीबा बुद गिर जावत, तुरुत उचा लेवत धर हाथ।