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गरीबा / चरोटा पांत / पृष्ठ - 4 / नूतन प्रसाद शर्मा

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सुद्धू के घर अैस फकीरा, देखत गम्मत रहि चुपचाप
बाप ला बाती केंदरावत कहि, आत हंसी हा अपने आप।
सुद्धू हा बिपताय नइ देखिस, पर मेचकू कूदिस अंटियाय
पीछू तन ले झटक फकीरा, डेड़ बिता ला कबिया लीस।
उझल गरीबा थपरा मारत, मूंछ चुंदी के बुता बनात
सुद्धू ला तब कथय फकीरा -”बिन कारण तोर टुरा सतात।
बिजनेवरा मन बुजरुक तक ला, ठंउका थोरको नइ डर्रांय।
सांप आग ला हंस के धरथंय, अनुचित उचित समझ नइ पांय।”
छुइस गरीबा के तन ला तंह, कथय फकीरा हा मुंह फार-
“चढ़े बुखार तोर छोकरा ला, बयचकहा, बइठे हस कार!
नजर डीठ हा गपगप पकड़े, काजर लान आंख पर आंज
छेना राख लान मंय फुकिहंव, तुरुत करंजा-ऊपर गाज।”
सब समान पाइस तंह आंजत एकदम जोरव फकीरा।
मगर गरीबा काजर मेटत वह बिजनेवरा खीरा।
देख गरीबा के मुंह करिया, दुनों सियान हंसत बेहाल
बेलबेलहा हा उंकरो मुंह पर, करिया रंग तुरुत दिस पोत।
अब दूनों झन कठल के हांसत, हंसत पेट हुलकी धर लीस
सुद्धू कथय -”गरीबा बोलत-तुम्हर बुद्धि भुलकी दस बीस।
तुम शंकालु रुढ़िवादी हव-जग ला लेगत पाछू कोत
नजर डीठजादू टोना नइ, तब ले करत खटकरम मंत्र।”
“वास्तव मं नइ टोनही रक्सा, ठुंवा ठामना प्रेतिन भूत
हमला ठग मन टिंया ले ठग दिन, लेकिन कहां चढ़िस कभु चेत!”
अतका कहि अउ कथय फकीरा -”दर्पण एक खोज टुप लान
अपन रुप ला देख गरीबा, कइसन खेल करत हो भान!”
जोजिया डरिस फकीरा कतको, पर सुद्धू हा ढंग लगात-
“तंय जानत हस मोर हाल सब, धन रुपिया के रहत अभाव।
पानी आय हमर बर दर्पण, जेहर मिल जावत हर ठौर
यदि तंय पानी ला मांगत हस, निपटा सकत तोर मंय मांग।”
“हवभई’ ला सुन सुद्धू झपकुन, एक सइकमा जल धर लैस
पानी देख गरीबा डरगे, धर नइ पात एक क्षण धीर।
देखिस अरन बरन खुद के मुंह, निश्छल ह्मदय टुरा डर्रात
गदफद जल जा पीट दीस अउ, अबड़ जोर रोवत चिल्लात।
सुद्धू अपन पुत्र ला पाथय, गाथय गीत कराथय शांत-
“पानी हा नुकसान बताहय, एक तो लइका अइसे क्लान्त।
देख फकीरा तंत्र मंत्र हा, एको कनिक दीस नइ लाभ
तंय खटकरम करे हस जे अभि, मोर पुत्र ला परसिस हानि।
एकर तन पानी मं भींगिस, डर हे स्वास्थय बिगड़ झन जाय
मंय एला अब दवई पियाहंव, ताकि ठीक रहि करय किलोल।”
कहि के सुद्धू दवई पियावत, गाय दूध मं सरपट मेल
कुछ पश्चात जपर्रा सुतगे, अपन ददा ला मार लतेल।
सनम के याद फकीरा ला आवत, जउन सनम ओकर संतान
दीस फकीरा हा आशीष अउ, उहां ले सरके करत उपाय।
“तोर टुरा के नाक बजत अब, कृषक फसल रक्षक अरा राख
रउती भर सुख पाय गरीबा, बने कटय दिन हफ्ता पाख।”
दे आशीष चिमट चूमा मंग, चलिस फकीरा ओ तिर छोड़
सोनू बइठे आंख लाल कर, तेकर तिर मं बिलमिस गोड़।
तिजऊ जउन पहिलिच के अमरे, करत प्रार्थना हलू अवाज-
“एक आसरा धर आये हंव, किसनो कर निफरा भई काज।
पांच हजार नोट मांगत हंव, ओकर संग दू Ïक्वटल धान
महिनत कर मंय लहुटा देहंव, गिरन पाय नइ मोर जबान।”
सोनू कहिथय -”दार गला झन, फुरसुद कहां सुने बर टेस!
मंग उधार तंय गपक जबे चुप, तोर पास कुछ धन नइ शेष।”
“अपन चई भर लेस मोर धन, बद मितवारा कर के प्रीत
जरुरत बखत देखावत ठेंगवा, तब फिर हम तुम कइसन मीत”
“मोर पास अटपट झन गोठिया, फोकट बात बढ़ा झन लाम
चल तो भाग इहां ले झपकुन, कंगला के ए तिर नइ काम।
मोर मित्र हें धनी प्रतिष्ठित, मंय खुद हंव पुंजलग विख्यात
कंगला संग यदि करत मितानी, भर्रस गिरही गरिमा मोर।”
सुनते तिजऊ सुकुड़दुम होवत, थमना मुश्किल अइसन ठौर
अब सोनू के डेहरी त्यागत, लाचारी वश-मरत कनौर।
सोनसाय के पुत्र एक झन, जउन हवय बालक के रुप
बहुत सुरक्षा प्यार मं पालत, धनसहाय हे ओकर नाम।
धनसहाय ला परस पाय हे, ओला धर आथय ए पार
धनवा कूदत हे फकीरा तन, मार कुलच्ची पाय दुलार।
बालक पाय फकीरा अभरिस, परस ला बरजत सोनसहाय-
“बइकुफ, किलकत धनवा ला तंय, घर के बाहिर काबर लाय!
कते मनुष्य के कइसन आदत, पर के मन के कोन ला ज्ञान
नजर भूत ला चढ़ा देत यदि, कतका हलाकान-कुछ भान?
काम अंड़त नइ तोर बिगर सुन, ए तिर नइ होवत शुभ नेंग
धनवा ला कुछ होय के पहिली, ओला धर के अंदर रेंग।”