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गरीबा / तिली पांत / पृष्ठ - 13 / नूतन प्रसाद शर्मा

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तुम अनाज ला नष्ट करत हव ओला छोड़ के जूठा।
इही टेस के कारन मारत भूख रोग हा जूता।
फत्ते खुद ला ऊंचहा मानत, तब ओला चढ़गे कंस क्रोध
पिनकू के दर्जा गिराय बर, सब ला सुना के डांटत खूब –
“वह रे राष्ट्रभक्त परमार्थी, बहुत दिखात नेक सिद्धान्त
होटल के तंय निकल कलेचुप, वरना तोर अवस प्राणान्त”।
पिनकू हा फत्ते पर बखलिस -”मंय ताकत मं बहुत सजोर
तोला रचका खेद सकत हंव, मार सकत हंव नक्सा तोर।
पर फोकट के झगरा बढ़िहय, इहां आय हें अउ कई लोग
उंकरो शांति भंग हो जाहय, तब मंय रहि जावत चुपचाप।”
अैकस उमेंदी संग मं कंगलू, अउ गोबरुजुगबती सुहान
एमन हा अनाथ लइका एं, जीयत भूख बिपत ला ताप।
किहिंस उमेंदी हा कचरा ला -”तंय जानत हस परिचय मोर
मंय पहिली के आंव विधायक, मांगे के आदत हे मोर।
पलिही मंय हा वोट ला मांगव, उही सुभांव करत हंव मांग
मोर साथ लइका आए हें, एमन हा असहाय अनाथ।
इंकरे बर होटल मं जाथंव, जिनिस मांगथंव जूठा शेष
अदमी मन के कपड़ा मंगथंव, ताकि ढांक ले खुल्ला देह।
तोर ले तक मंय रखत अपेक्षा – जूठा जिनिस ला कर दे दान
एकर ले कई लाभ हो जाहय, तोर होय नइ कुछ नुकसान।
जेन जिनिस हा फटका जाथय, पर अब नइ होवय बर्बाद
बच्चा मन के पेट भराही, एमां तोर जसी जयकार।”
कचरा हा अकचका के बोलिस – “तंय हा फभे के लाइक बोल
मंय जूठा ला कइसे देवंव, मोला ब्यापत बुरा कनौर।”
“बेरी बेरी दउड़ के आहंव, जिनिस मांगहूं आरुग साफ
मोला देख घृणा तंय करबे, आखिर मं करबे इन्कार।
जेन जिनिस मंय हा मांगत हंव, सक्षम के फेंके के आय
पर अभाव मं जेहर जीयत, ओकर बर एहर बहुमूल्य।
जे पर के फेंके के लाइक, ओहर इनकर बर स्वीकार
तंय हा आनाकानी झन कर, हरहिन्छा दे जूठा चीज।”
“तंय बोलत तेला मानत हंव, उठा लेग मनमाफिक चीज
पर झन होय मोर नकमरजी, एकोकनिक आय झन आंच।”
बालक मन जूठा ला सकलिन, उंकर हृदय होगिस खुश खूब
किहिस उमेंदी ला फत्ते हा – “मंय हा शर्मिन्दित हंव आज।
हम्मन टेस टास मारे बर, प्लेट मं छोड़त खाय के चीज
एक डहर हम जेवन फेंकत, दूसर तन भुखहा हें लोग।
यदि मनखे हा खुद सुधरय अउ, करय चीज के सदउपयोग
तब एकोझन भूख मरय नइ, सबके पेट रही दलगीर।”
फत्ते हा रुपिया ला हेरिस, ओला कचरा ला पकड़ैस
बोलिस -”तंय हा बांथ दे बढ़िया, स्वादिल जिनिस मीठ नमकीन।
मंय अनाथ मन ला का देवंव, मोर डहर ले अतकिच भेंट
कहिथंय – पर के मदद करइ मं, धन हा बढ़त ऊन के दून।”
कचरा हा समान ला बांधिस, लइका मन ला पकड़ा दीस
फत्ते हा पिनकू ला देखत, ओकर आंख कृतज्ञ के भाव।
फत्ते हा होटल ले निकलिस, गीस उमेंदी बालक साथ
अब आगू कोती का होवत – ध्यान लगा के देखव हाल।
मींधू हा कचरा तिर अमरिस, झट हेरिस चरपा अस नोट
रुपिया के गड्डी ला देखिस, पिनकू हा चाबत हे ओंठ।
अचरच भर मन अंदर सोचत – यहू दूसरा अस बेकार
कहां ले पाइस अड़बड़ रुपिया, पता चलत नइ कुछ सच सार!
दूनों झन होटल ले निकलिन, तंह मींधू हा हेरिस बोल –
“मोर बात झन बुरा मानबे, मंय बोलत हंव अंतस खोल।
तोर साथ ला मंय छोड़त हंव, अरझे हवय एक ठन काम
ओला मंय हा अब निपटाहंव, रुकन पांव नइ खमिहा गाड़।”
पिनकू किहिस -”उहिच मंय सोचत, मंय हा घलो बिलम नइ पांव
तोर ले पहिली झप खसकत हंव, कतको बुता करत हें खांव।”
पिनकू हा मींधू ला छोड़िस, ओ तिर ले खसकिस कुछ दूर
कोन्टा लुका अपन मन सोचत -“अब रहस्य के पता लगांव।
मींधू कहां ले रुपिया पाइस, ओकर काय अरझगे काम
सत्य बात के पता लगाय तब, मन के शंका लिही अराम।’
दूसर तन मींधू हा सोचत – कते डहर ले पिनकू अैमस
दुनिया भर के भेद ला पूछिस, सच बताय मोला चमकैस।
पर ओकर ले मंय चलाक हंव, हटा देंव जतका अस विघ्न
अब मंय फिक्कर ले दुरबाहिर, होहय बुता पूर्ण निर्विघ्न।
ओकर काम ला पाठक सुन लव – हवय शहर मं नलघर एक
नल ले फइलत उहां के जल हा, उही ला पीथंय जीव अनेक।
मींधू तिर मं तीक्ष्ण जहर हे, जहर ला जल मं करिहय मेल
जतका मनसे पानी पीहंय, उंकर खतम जीवन के खेल।
मींधू सावधान बन तरकत, पहुंच गीस नलघर के पास
गलत बुता करना ते कारन, ऊपर तरी होत हे सांस।
तीक्ष्ण जहर ला हेर लीस अउ, आगू तन के करिस उपाय
ओतकी मं पहुंचिस पिनकू हा, मींधू पास बम्ब अस धांय।
मींधू के विष ला टप झटकिस, कहिथय – “एहर काय मितान
लगत – खाय के जिनिस धरे हस, चल तो भला दुनों झन खान।
अरे अरे मंय गल्ती बोलत, उत्तम चीज तोर भर आय
तभे खाय के तोरेच हक हे, तब तंय हा बस स्वयं गफेल।”
पिनकू हा विष ला खावय कहि, मींधू डहर लेगथय हाथ
मींधू हा पंचघुंच्चा घुंचथय, किसनो कर बचाय बर जान।
पिनकू बोलिस -”काबर भागत – तंय हा धरे हवस का चीज
एकर ले का रउती करबे, सच सच बता अपन उद्देश्य?”