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गरीबा / तिली पांत / पृष्ठ - 14 / नूतन प्रसाद शर्मा

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मींधू हा सब भेद खोल दिस -”मंय हा जहर रखे हंव साथ
एला जल मं मेल दुहूं तंह – पटपट मर जाहंय सब जीव।
सच बिखेद ला मींधू फोरिस, तंह पिनकू हा छोड़िस सोग
मरते दम मींधू ला दोहनत, ओहर हवय घलो ए जोग।
पिनकू छरिस -”काय पाते तंय मनखे के कर हत्या।
काकर बुध ला मान चलत हस खोल मोर तिर सत्तम।
मींधू हंफरत हलू निकालिस -”तंय जानत हस जीवन मोर
मंय हा शिक्षित पढ़े युवक अंव, मगर काम बिन किंजरत खोर।
इही बीच मं एक विदेशी, मोर पास पहुंचिस चुपचाप
ओहर बोलिस – “मंय हा हरिहंव, तोर जतिक अस दुख संताप।
मंय तोला रुपिया देवत हंव, पर तंय उठा एक ठक काम
पानी मं विष मिला बेहिचक, रखिहंव गुप्त तोर जे नाम।”
मंय घोखेंव -”चहत हंव मंय हा – बढ़िया शासकीय पद एक
यदि मोला रुपिया मिल जाहय, तंहने पटा दुहूं फट घूंस।
फिर नौकरी तो खत्तम मिलिहय, भरभर बर जाहय दुख फूस
आय विदेशी तेकर मानों, तभे लक्ष्य आहय खुद दौड़।”
रुपिया ला गिन दीस विदेशी, बढ़िस बिकट लालच के रोग
ओकर बात मान के मंय अभि, काम अनर्थ करत बिन सोग।”
पिनकू बोलिस – “अर्थ पाय हस, ओकर ले मोला नइ अर्थ
बता विदेशी के छैंहा ला, वरना भगा जहय ठंव छोड़”।
मींधू हा स्वीकार करत नइ, ओहर फंसे कड़क दू ओर
खाई कुआं दुनों जब संघरा, कते कते तन लेगय गोड़।
आखिर मींधू हुंकी ला भर दिस – “बने के बिगड़य भावी मोर
कहां विदेशी चुप बइठे हे – चल बतात हंव ओकर धाम”।
दूनों झन थाना मं चल दिन, उहां हे अगमा थानेदार
जहां शत्रु के भेद ला खोलिन, अगमा के नटिया गे आंख।
थानेदार चटापट दउड़िस, आरक्षक दल धर के साथ
जहां लुका के हवय विदेशी, उंहचे दबिस दीन तत्काल।
खतरा देखिस जहां विदेशी, खसके बर होवत हुसियार
लेकिन ओहर तरक सकिस नइ, नरी ला धरलिस थानेदार।
जब कमरा के जांच हा होइस, मिलिस उहां पर नोट अपार
गांव देश के नक्शा मिलथय, एक सेक घातक हथियार।
अगमा हा खखुवा के पूछिस -”तंय हा इहां आय हस कार
मींधू ला चलवात कुरद्दा, अपन भेद ला सच सच खोल?”
“मंय ए देश आय एकर बर – भारत देश मचय खुरखेद।
शासन के विरोध जे करथय, जे अशांत द्रोहिल कंगाल
ओला हम बनात आतंकी, ओकर मदद करत हर हाल।
आंतकी मन हमर मानथंय, तोड़ फोड़ कर लेथंय जान
इही समस्या ले निपटे बर, भारत देश के जाथय जान।
वाजिब उन्नति होन पाय नइ, अधर मं लटकत जमों विकास
तंहने भारत देश हा होथय, अन्य देश के आर्थिक दास”।
अगमा हा खखुवा के बोलिस -”चल संग मनुखमार जासूस
थाना मं फिर अउ बोकराहंव, मरते दोंगर रहस्य ला पूछ”।
पिनकू अउ मींधू ला बोलिस – “तुम पकड़ाय शत्रु ला आज
तुम्मन हव तारीफ के काबिल, होत हवय भारत ला नाज।
मानव के हित करय जउन हा, हम चाहत हिम्मती जवान
मुड़ हा ऊपर होत गरब मं, तुम्मन देशभक्त इंसान”।
थानेदार ला पिनकू बोलिस -”जनता के जीवन बच गीस
ओमां मोर हाथ नइ थोरको, बस मींधू भर करिस कमाल।
एहर अपन साथ मं लेगिस, याने बना सहायक एक
बरदी के चरवहा हा रखथय, मदद करे बर टेचा एक”।
थानेदार विदेशी मन गिन ओ तिर छोड़ के थाना।
मींधू पिनकू काबर रुकतिन परगे पांव बढ़ाना।
“मंय हतियारा लालच मं पर, जोंगे रेहेंव क्रूर के काम
लेकिन तंय हा बीच मं आके, छेंक देस होवत अनियाव।
अउ उपरहा मोर रक्षा बर, करत प्रशंसा रख के तर्क
वाकई तोर मोर मं अंतर, अमृत विष मं जतका फर्क”।
मींधू हा धथुवा के बोलिस, तंह पिनकू हा पारिस बेंग-
“मोला चढ़ा अकास झनिच तंय, झन कर अभिच प्रशंसा नेंग।
वरना तोला फंसा दुहूं मंय – तंय हड़पे हस नंगत नोट
ओकर भेद खोलिहंव सब ठंव, तंहने फइल जहय हर ओंठ।
तोर राह हा ठीक के गल्ती, अपन कर्म के चहत हियाव
बइसाखू व्याख्याता तिर चल, उही हा करही सही नियाव।
साहित्य क्षेत्र मं आय समीक्षक, लेख सुधारत करके वार
पर यथार्थ घटना जे घट गिस, ओकर पर का रखत विचार?”
एमन बइसाखू तिर पहुंचिन, मिलगे उंहचे बालक एक
बइसाखू के पुत्र ए छबलू, ओकर गाल चिकोटी देत।
एमन फोरिन पूर्व के घटना, बइसाखू व्याख्याता पास
बइसाखू हा बात समझ के, सोचत देखिस ऊपर अकाश।
मींधू पर ललिया के भड़किस – “तोर काम ले आवत शर्म
ककरो प्रान ला जबरन छिनना, कहां आय मानव के धर्म!
मगर खुशी ए बात के होवत – जग मं बांच गीन निर्दाेष
अब ले ठीक चाल रेंगे कर, सदा रखे कर कायम होश।
गलत काम कर नोट पाय हस, याने करे हवस अपराध
पर मंय तोला क्षमा देत हंव, अब पूरा कर खुद के साध।
सांप के विष जीवन ला हरथय, कांटा हा गड़ सुख हर लेत
पर कांटा ले कांटा निकलत, विष औषधि बन जीवन देत।
घूंस खवा के झटक नौकरी, अउ जनता के कर उपकार
शोषक द्रोहिल ले टक्कर कर, तब निवृत्ति दोष के भार”।
मींधू बोलिस – “तंय बफले हस, बुरा लगिस पर मिलही लाभ
व्यासी बखत धान मुरझाथय, मगर बाद उमछावत तान”।