Last modified on 7 जनवरी 2017, at 16:45

गरीबा / तिली पांत / पृष्ठ - 16 / नूतन प्रसाद शर्मा

अब टोनही मन पांचों झन ला, बना के रखिहंय रक्सा भूत
तंह जीयत ला भूत धराहंय, जीव घलो लेहंय कर नेत।”
पिनकू कुछ मुसका के बोलिस -”घर ला लेत अंधविश्वास
एकर होत विरोध खूब जम, तभो ले आखिर बनथन दास।
एकर पर विश्वास करत शिक्षित वैज्ञानिक ज्ञानी।
सत्य बतातिन तेमन पीयत – टोना रुढ़ि के मानी।
एकर बाद चलिस पिनकू हा, देखत हवय गांव के काम –
परब देवारी तिर मं आवत, मनसे मन के बंद अराम।
देवारी के अड़बड़ बूता, ककरो उल नइ पावत ओंठ
मांईलोगन मन भिड़ पोतत, फूल उतारत भिथिया कोठ।
दूसर दिन पिनकू के संग मं, मेहरुके फट होगिस भेंट
पिनकू हा रचना ला हेरिस, कर दिस मेहरुके अधिकार।
कहिथय -”तोर स्तरीय रचना, रखे जउन मं उच्च विचार
ओला जहरी हा लहुटा दिस, छापे बर कर दिस इंकार।
एकर ले तोर हालत कइसे, होवत हस का बहुत निराश
तंय भविष्य मं रचना लिखबे, या लेखन ला करबे बंद?”
मेहरुहंस के उत्तर देथय -”करत कृषक मन कृषि के काम
मिहनत कर नंगत व्यय करथंय, पर फल मं पावत नुकसान।
पर कृषि कर्म ला कभु नइ छोड़य, चलत राह पर कर उत्साह
साहस करके टेकरी देवत, तभे विश्व ला मिलत अनाज।
उही कृषक के तिर मंय बसथंव, तब उत्साह रखत हंव पास
कतको रचना लहुट के आवत, मगर दूर मं रहत निराश।
सम्पादक रुढ़िवादी होथंय – युग ला छोड़ चलत हें राह
समय विचार बदल जाथय जब, तब ओला करथंय स्वीकार।
चर्चित अउ परिचित लेखक ला, सम्पादक मन स्वीकृति देत
उनकर रचना ला नइ जांचंय, भले लेख होवय निकृष्ट।
सम्पादक के कुर्सी पावत, तंहने खुद ला समझत श्रेष्ठ
श्रेष्ठ लेख ला टुकनी फेंकत, साहित्यिक कृति करथंय नष्ट।
साहित्य मं परिवर्तन आथय, तउन ले सम्पादक अनभिज्ञ
लेखक जउन करत परिवर्तन, ओहर खावत हे दुत्कार।”
मेहरुहा ठसलग गोठिया के, उहां ले सरके करिस प्रयास
पिनकू पूछिस -”कहां चलत हस, मोर पास कुछ समय तो मेट?
देवारी हा लकठा आगे, जावत शहर फटाका लाय
नंगत असन बिसा के लाबे, हमूं ला देबे धांय बजाय।”
मेहरुकिहिस -”मोर ला सुन तंय – मंय खैरागढ़ जावत आज
घुरुवा मन के चलत अदालत, ओकर अंतिम निर्णय आज।
एकर पहिली बल्ला मालिक, घुरुवा मन के बनिन गवाह
मुजरिम मन हा बच जावय कहि, ओमन बोल के हेरिन राह।
मेहरुहवय तेन तिर पहुंचिन – बिरसिंग मगन घुरुवा बिसनाथ
एमन अब खैरागढ़ जावत, बपुरा मन असहाय अनाथ।
न्यायालय के तिर मं पहुंचिन, खेदू संग होगिस मुठभेड़
खेदू ला बिसनाथ हा पूछिस -”साफ फोर तंय खुद के हाल।
तंय अपराध करे हस कइ ठक, न्यायालय का दण्ड ला दीस
कतका रुपिया के जुर्माना, कतका वर्ष के कारावास?”
खेदू बफलिस -”अटपट झन कह, तुम्हर असन मंय नइ अभियुक्त
मोर बिगाड़ कोन हा करिहय, मंय किंजरत फिक्कर ले मुक्त।
छेरकू हा आश्वासन देइस ओला कर दिस पूरा।
जतका अपराधिक प्रकरण तेमन बह गिन जस पूरा।
यने राज्य शासन वापिस लिस – जनहित मं अपराध ला मोर
न्यायालय हा धथुवा रहिगे, मोर उड़त सब दिशा मं सोर।”
बिरसिंग कथय -”समझ ले बाहिर, जब तंय वास्तव मं अभियुक्त
अर्थदण्ड अउ जेल मं जातेस, पर हरहा अस किंजरत मुक्त।
हम निर्दाेष हवन सब जानत, तभो ले फांसत हे कानून
हम्मन निर्णय मं हा पावत – इही सोच तन होवत सून।”
घुरुवा मन के समय अैमस तंह, न्यायालय के अंदर गीन
इनकर निर्णय ला जाने बर, कतको मनसे भीतर गीन।
मोतिम न्यायाधीष उपस्थिति, मुजरिम मन कटघरा मं ठाड़
इंकर हृदय हा धकधक होवत – अब तब टूटही बिपत पहाड़।
हरिन डरत हे देख शिकारी, मछरी डरत देख के जाल
टंगिया देख पेड़ थर्राथय, हंसिया ले भय खात पताल।
न्यायाधीष हा निर्णय देइस – “हाजिर हें अपराधी जेन
तुम पर चार लगे हे धारा, जेहर एकदम कड़कड़ ठोस।
पांच सौ छै बी- तीन सौ एकचालिस, एमन दुनों सिद्ध नइ होय
तब आरोप मुड़ी ले बाहिर, दण्ड करन पावत नइ बेध।
तीन सौ तिरपन – दू सौ चौरनबे, ए अपराध प्रमाणित होय
हर अभियुक्त जेल ला भोगव – गिन दू साल माह बस तीन।
अजम वकील सन्न अस रहिगे, अभिभाषक कण्टक मुसकात
मुजरिम मन कारागृह जावत, जेला “नरख’ कथंय सब लोग।
न्यायालय ले निकलिस मेहरु, मिलिन बहल बेदुल दू जीव
बेदुल हा खेदू ला खोजत, अपन साथ रख पसिया पेज।
मेहरुचहत बात कुछ कहना, पर बेदुल के पर तन ध्यान
आखिर मं खेदू हा मिल गिस, ओकर बढ़े भयंकर रौब।
मनखे मन जुरियाय तिंकर तिर, अपन शक्ति के मारत डींग
दमऊ के टोंटा ला चपके बर, दफड़ा करथय खूब अवाज।
खेदू किहिस -”खूब मंय चर्चित, दैनिक पत्र मं छपगे नाम
मंय हा कतको जुरुम करे हंव, कई जन के मारे हंव जान।
भाजी भांटा ला पोइलत तब – आत्मा मं न कसक न पीर
मनसे ला नंगत झोरिया के, मंय पावत हंव नव उत्साह।”
ओ तिर खड़े हवंय जे मनखे, क्रूर कथा सुन आंख घुमात
उनकर रुआं खड़े होवत डर, मन मन कांपत पान समान।