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गरीबा / तिली पांत / पृष्ठ - 18 / नूतन प्रसाद शर्मा

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ठेपू कथय -”बिकट मनसे हस, तंय हस मित्र निघरघट जीव
गोल्लर अस अंड़िया के रेंगत, सब ला रखत कांरव मं दाब।”
बेदुल के अब कान पिरावत, खेदू के सुन क्रूर घमंड
बेदुल के नकडेंवा चढ़गे, ओहर सवा सेव बन गीस।
खेदू ला भन्ना के पूछिस -”तंय अस कोन करत का काम
मंय हा चहत तोर सच परिचय, ताकि तोर जस हर ठंव गांव?”
खेदू कहिथय – “पिया चुके हंव, मोर शक्ति ला सब के कान
पर अब गर्व साथ खोलत हंव, मोर सिंहासन कतका ऊंच!
मंय करथंव अपराध बेहिचक, मोला जम्हड़ लेत कानून
पुलिस अदालत प्रकरण चलथय, खेदू पाय कड़ाकड़ दण्ड।
पर मंय साक्षी ला फोरत हंव, या धमकी झड़ खेदत दूर
जब आरोप सिद्ध नइ होवय, मंय निर्दाेष प्रमाणित होत।”
खेदू टेस बतावत पर बेदुल कांपत जस पाना।
आखिर जब सइहारन मुस्कुल क्रोध फुटिस बन लावा।
भड़किस – “रोक प्रशंसा ला अब, अति के अंत होय के टेम
पांप के मरकी भरत लबालब, तभे हमर अस लेवत जन्म।”
खेदू के टोंटा ला पकड़िस, अपन डहर झींकिस हेचकार
भिड़ के शुरुकरिस दोंगरे बर, सरलग चलत मार के वार।
कृषक हा बइला ला गुचकेलत, डुठरी ला कोटेला दमकात
बेदुल हा खेदू ला झोरत, यद्यपि अपन हंफर लरघात।
खेदू ला भुइया मं पटकिस, ओकर वक्ष राख दिस पांव
खेदू ला बरनिया के देखत, खुद के परिचय साफ बतात –
“मरखण्डा ला मंय पहटाथंव, हत्यारा के लेथंव प्राण
शोषक के मंय शोषण करथंव, मंय खुश होवत ओला लूट।
न्यायालय समाज पंचायत, शासन साथ पुलिस कानून
एमन अपराधी ला छोड़त, यने दण्ड देवन नइ पांय।
तब मंय हा जघन्य मुजरिम ला, अपन हाथ ले देवत दण्ड
ओकर नसना रटरट टूटत, मंय मन भर पावत संतोष।”
मनसे भीड़ कड़कड़ा देखत, मगर करत नइ बीच बचाव
चलत दृष्य के करत समीक्षा, चम्पी तक हा झोंकिस राग –
“खेदू हे समाज के दुश्मन, पथरा हृदय बहुत हे क्रूर
ओकर दउहा मिटना चहिये, तब समाप्त जग अत्याचार।
बेदुल असन बनंय सब मनसे, जेन करत एक तौल नियाव
अपराधी ला दण्डित करथय, दीन हीन ला प्रेम सहाय।”
तब मेहरुहा बहल ला बोलिस – “फोर पात नइ अपन विचार
पक्ष विपक्ष कते तन दउड़ंव, दूनों बीच कलेचुप ठाड़।
अनियायी के भरभस टूटय, अत्याचार के बिन्द्राबिनास
पर समाप्त बर कते तरीका, भूमि लुकाय कंद अस ज्वाप।
अपराधी शोषक परपीड़क, पापी जनअरि मनखेमार
इनकर नसना ला टोरे बर, दण्ड दीन – जीवन हर लीन।
तउन क्रांतिकारी ईश्वर बन, सब झन पास प्रतिष्ठा पैन
उनकर होत अर्चना पूजा, कवि मन लिखिन आरती गीत।
पर एकर फल करुनिकलगे, गलत राह पकड़िन इंसान
हिंसा युद्ध बढ़िस दिन दूना, शासन करिस अशांति तबाह।
जइसन करनी वइसन भरनी, पालत अगर इहिच सिद्धान्त
बम के बदला बम हा गिरिहय, राख बदल जाहय संसार।”
आगी हा जब बरत धकाधक, रोटी सेंके बर मन होत
बहल के मन होवत बोले बर, हेरत बचन धान अस ठोस-
“आग ला’ अग्नि शमन दल, रोकत, रुकत तबाही होवत शांत
तइसे नवा राह हम ढूंढन, तब संभव जग के कल्याण।”
झंझट चलत तउन अंतिम तंह, दुनों विश्वविद्यालय गीन
उहां रिहिस ढेला कवियित्री, तेकर साथ भेंट हो गीस।
ढेला उंहचे करत नौकरी, पाय प्रवक्ता पद जे उच्च
ओकर रुतबा सब ले बाहिर, लेकिन रखत कपट मं दाब।
ढेला हा मेहरुला बोलिस -”मोर नाम चर्चित सब ओर
दैनिक पत्र हा स्वीकृति देथय, कई ठक पुस्तक छपगे मोर।
दिखत दूरदर्शन मं मंय हा, मिंहिच पाठ्य पुस्तक मं छाय
देत समीक्षक मन हा इज्जत, साहित्य मं प्रकाशित नाम।”
गांव के लेखक आय बहल हा, चुपे सुनत ढेला के डींग
जतका ऊंच डींग हा जावत, उसने बहल के फइलत आंख।
जब ढेला हा उहां ले हटगिस, बहल अैेस मेहरुके पास
पूछिस -”ढेला जे उच्चारिस, ओमां कतका प्रतिशत ठीक?”
मेहरुकथय -”किहिस ढेला हा, तेन बात हा बिल्कुल ठोस
शिक्षा उच्च पाय मिहनत कर, संस्था उच्च पाय पद उच्च।
पर अचरज के तथ्य मंय राखत, जीवन पद्धति राखत खोल –
संस्था परिसर रहत रात दिन, पुस्तक संग संबंध प्रगाढ़।
अपन ला प्रतिष्ठित समझत हें, जन सामान्य ले रहिथंय दूर
उंकर पास नइ खुद के अनुभव, पर के पांव चलत हें राह।
कथा ला पढ़ के लिखत कहानी, पर के दृष्य विचार चुरात
समय हा परिवर्तित हो जावत, तेकर ले ओहर अनजान।
भूतकाल के कथा जउन हे, ओला वर्तमान लिख देत
अपन समय ला पहिचानय नइ, कहां ले लिखहीं सत्य यथार्थ!”
मेहरुबात चलावत जावत, तभे बहल ला मारिस रोक –
“जेन काम दूसर मन करथंय, उहिच काम तंय तक धर लेस।
उच्च विशिष्ट जउन मनसे हे, उंकर होत आलोचना खूब
उंकरेच बाद प्रशंसा होवत, आखिर चर्चित उंकरेच नाम।
सिंचित भूमि मं किसान मन हा, डारत बीज लान के कर्ज
उहिच भूमि मं करत किसानी, नफा होय या हो नुकसान।
भूमि कन्हार जमीन असिंचित, एला देख भगात किसान