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गरीबा / तिली पांत / पृष्ठ - 1 / नूतन प्रसाद शर्मा

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तिल्ली पांत

वंदना
अपन तरी मं रखत अंधेरा – दूसर जगह उजाला।
अपन बिपत ला लुका के रखथय – पर के हरथय पीरा।
खुद बर – पर के दुख ला काटत उही आय उपकारी।
पांव परंव मंय दिया के जेकर बिन नइ होय देवारी।

“मंगलिन कपड़ा मिल’ एक ठक हे, ओकर स्वामिन मंगलिन आय
ओकर गरब अमात कहूं नइ, काबर के धन धरे अकूत।
कपड़ा मिल के कुछ आगुच मं, सकला खड़े हवंय मजदूर
खलकटभाना बुल्खू द्वासू, झनक बैन अउ कई मजदूर।
उंकर हाथ मं मांग के तख्ती, ओमां लिखे मांग के बात
सब के मुंह मं क्रोध उग्रता, चिल्ला रखत हवंय हक मांग।
भाना सब ला सम्बोधन दिस – “हम कमात हन जांगर टोर
हर कर्तव्य करत हन पूरा, मानत हन मालकिन आदेश।
मगर स्वयं के हक नइ पावत, पेट हे सप सप बिगर अनाज
पहिरे बर चेंदरा तक कमती, हम कब पाबो सुख के राज?
तरतर तरतर चुहत पसीना, श्रम के कारण करिया देह
पर एको झन सोग मरत नइ, जीयत मं भोगत हन नर्क।”
श्रमिक बीच मं झनक खड़े हे, जउन श्रमिक नेता विख्यात
सदा श्रमिक के पाती दाबत, ओकर धाक मान हर ओर।
झनक के मुंह बम लाल क्रोध मं, ओहर कहत देखा कंस जोश –
“मितवा मजुर, आय सच एहर – सुख के सुरुज हमर ले दूर।
वास्तव मं मंगलिन हा शोषक, पर हक मारत बन के क्रूर
करय श्रमिक पर दया मया नइ, जोंख असन चुहकत हे खून –
हमर प्रार्थना ला लतियावत, तब हम घलो लेन प्रतिशोध –
कर हड़ताल काम सब रोकव, मिल स्वाहा कर ढिल दव आग।”
श्रमिक मित्र बुल्खू हे ओ कर, उहू सुनिस भाषण कर चेत
बुल्खू मंथिर बुद्धि के स्वामी, उग्र शब्द ला नइ अपनैस।
पर उहि भाषण सुनिन श्रमिक मन, उझलत उंकर जोश के ज्वार
मुंह ला उला लगावत नारा, बंगी पढ़त बहुत बेकलाम।
तख्ती धर आगू तन जावत, ओमा लिखे हवय कई बात –
मुर्दाबाद होय मंगलिन के, सब मजदूर के जिन्दाबाद।
हर मनखे ला मंगत समर्थन, ताकि जमों आकर्षित होय
शहर मं किंजरत हवंय निघरघट, सड़क जाम कर रेंगत राह।
खुले दुकान ला बंद करावत, ताकत देखा – आंख कर लाल
जेन दुकनहा बंद करत नइ, ओकर जिनिस करत हें राख।
रमझू रिवघू सुकलू अउ बांके, उंकर साथ अउ कई ग्रामीण
“पूना के दूकान मं पहुंचिन, रुपिया गिन क्रय करत समान।
ओतकी बरवत श्रमिक मन अमरिन, द्वासू हा हेरिस स्वर जोर –
“पूना, तंय हा हमर बिपत सुन – हमर मालकिन सब ले क्रूर।
तरहा तरहा के कर दिस तब, हम्मन करत बिकट हड़ताल
तंय हा घलो समर्थन कर दे, तुरुत बंद कर अपन दुकान।”
पूना सब मजदूर ला बोलिस -"मोर समर्थन तुम्मन लेव
वास्तव मं मंगलिन ला चहिये – तुम्हर मांग कर ले सिवकार।
पर तुम मोरो कोती देखव – दुरिहा के ग्राहक मन आय
बपुरा मन हा जिनिस बिसावत, ओमन ला लेवन दव चीज।
एमन मोला रुपिया देहंय, मोला होत अर्थ के लाभ
एकर बाद तुमन जे कहिहव, मान लुहूं मंय बिन इन्कार।”
भड़किस बैन -"लफरही झन कर, अपन कमई ला कर दे बंद
हमर कमई हा बंद कड़ाकड़, तोला कार कमावन देन।”
सुकलू हा सब श्रमिक ला बोलिस -”भइया, हम अन तुम्हर समान
खेत कमाथन मरो जियो रड़, पहती टेम ले बुड़ती बाद।
कृषि औजार बिसाय आय हन, हमला लेवन देव समान
यदि दूकान लगत हे तारा, हमर काम रुक जहय फटाक"।
झनक बिफड़ गिस देहाती पर -"तुमन पाट भाई अस आव
हमर – तुम्हर हे एक राह मन, बिल्कुल एक ठिंहा उद्देश्य।
पर तुम उल्टा बात करत हव, लगथय तुम अव स्वार्थी जीव
चलव मदद देवव तुम हमला, खुले दुकान ला बंद कराव”।
रमझू किहिस -"सुकड़दुम हन हम निकल पात नइ बोली।
यदि हिम्मत कर करत उदेली झाफड़ हमरे झोली।
लेकिन शूल हृदय ला मारत – जब तुम्मन चाहत हव मांग
मंगलिन पास पहुंच के बोलव, कार शहर ला देवत कष्ट?”
भाना के आंखी ललिया गिस, देहाती पर भड़किस जोर –
“तुम्मन कायर डरपोकना हव, हमर पक्ष ला लेहव कार।
तुम्हर फसल हा चरपट होवत, कभू बाढ़ मं कभू अकाल
ओला देव प्रकोप समझथव, रोवत हव रहि के चुपचाप।
जबकिन तुमला मंगना चहिये – शासन तिर अन धन के मांग
जब तुम कड़कड़ महिनत करथव, सब हक पाय तुम्हर अधिकार।
अपन कान ला टेंड़ के सुन लव – तुम कुछ चीज लेन नइ पाव
हम दुकान ला बंद कराबो, एमां शंका के नइ छेद”।
नेक विचार गंवइहा राखिन, मगर उंकर ला मानय कोन
जमों श्रमिक पूना ला डांटिन, बंद करा दिन तुरुत दुकान।
हवय शहर मं कचरा होटल, नीक प्रबंधक कचरा आय
उहां श्रमिक मन निंगिन दड़ादड़, उठा के फेंकत खाद्य समान।
एकर साथ क्रोध कर खूंदत, रइ छइ कर दिन जम्मों चीज
कचरा हा अकबका के देखत – कते डहर के आफत अैजस।
आखिर मं कंझा के बोलिस -"मंय हा कर्ज बैंक ले लेंव
ओकर ले मंय जिनिस बिसा के, बनवाये हंव खाय के चीज।