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गरीबा / तिली पांत / पृष्ठ - 2 / नूतन प्रसाद शर्मा

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सोचे रेहेंव – चीज जब बिकही, मंय हा नफा कमाहंव खूब
मगर जिनिस ला तुम रौंदत हव, मंय हा केंघर होत बर्बाद।
मोर तोर कभु लड़ई न झगड़ा, मोर दीन पर दया देखाव
जमों जिनीस ला राख सुरक्षित, मोर जीविका बने बनाव”।
बुल्खू चलत श्रमिक के संग मं, कब तक सहय गलत अन्धेर
छेंकिस -”सुनव श्रमिक भइया हो – कचरा कहत तेन हे ठीक।
वाकइ तुम्मन करत कुजानिक, राह चलत ते हवय अनर्थ
तुम खुद अन्न पाय बर तरसत, पेट भरे बर हव असमर्थ।
खाद्य वस्तु ला नष्ट करव झन, बल्कि खाव ओकर पर पांव
जलगस अन्न देवता जग मं, तलगस जीयत तन मं जान।
इही अन्न ला तुम पाये बर, महिनत करत – करत हड़ताल
होय अन्न – हिनमान कभुच मत, हिरदे ले ओला दव मान”।
बुल्खू जहां श्रमिक ला छेंकिस, झनक ला चढ़गे जलन बुखार
बुल्खू ला प्रतिद्वन्दी मानत, सिरी गिराय होत बउद्दार।
झनक हा बुल्खू ऊपर बिफड़िस -”श्रमिक उचात क्रांति के काम
जिनिस राख कर – आंतकित कर, प्रकट करत हें अपन विरोध।
तंय मंगलिन के खर दलाल अस, तभे लेत हस ओकर पक्ष
बनत श्रमिक नेता जग जहरित, पर पुंजलग ला देवत लाभ”।
भाना हा बुल्खू पर भड़किस – “तंय मजदूर के दुश्मन आस
लबरा बादर अस बोली मं, श्रमिक ला पहुंचावत हस लाभ।
तंय मंगलिन केहित के रक्षक, वास्तव मं तंय हा गद्दार
तंय मंगलिन ला देत पलोंदी, तब ओहर लतियावत मांग”।
टांठ गोठ ला सुनिन श्रमिक मन, करिन पसंद हृदय पर राख
बुल्खू ला कर दीन उपेक्षित, मारत बिख के प्रक्षेपास्त्र।
बुल्खू हा रहि गीस कलेचुप, समय आय ओकर विपरीत
जब दुख उल्टा बखत हा आवय, मानव रहय शांत गंभीर।
श्रमिक सुनिन जोशीला भाषण, उंकर जोश हा बढ़ गिस दून
उंकर बढ़त उत्पात बकचण्डी, टोरत हवंय नियम कानून।
आखिर मिल के तिर मं पहुंचिन, बैन हा बोलिस भर उत्साह-
“नांदगांव के सब मनसे मन, हमला खूब समर्थन दीन।
जेहर हमर बात नइ मानिस, करे हवन ओकर नुकसान
पर आखिर मं लेन समर्थन, शहर बंद हा सफल तमाम।
बचे हवय उद्देश्य एक ठन – मंगलिन ले लेवन प्रतिशोध
तुम्ही सुझाव सघर अक रद्दा – होय शत्रु के खुंटीउजार।”
झनक हा सब झन ला उम्हियावत -”मंगलिन हमला करत तबाह
ओकर नसना ला टोरे बर, मिल मं आगी ला ढिल देव”।
कतेक अनर्थ सहय बुल्खू हा, झनक ला बोइर अस झर्रात-
“अपन जिदद् के झण्डा फहरा, कोतला बना श्रमिक ला राख।
लेकिन गलत सलाह झनिच दे, श्रमिक के मुड़ चढ़ जहय नराव
कउनो नइ पतियायंय तोला, यने तोर नंगत नुकसान।
बुल्खू हा मजदूर ला बोलिस -”तुम्हर शत्रु मंगलिन हा आय
ओकर मिल मं बुता करव झन, बइठव रात दिवस हड़ताल।
रखव सुरक्षित कारखाना ला, ओमां भूल ढिलव झन आग
मंगलिन – तुम्हर चेत जब वापिस, इहिच दिही भोजन भर पेट”।
सच ला ठुकरा दीन श्रमिक मन, तोड़ फोड़ होगिस शुरुवात
कई मशीन ला रटरट टोरिन, मिल ला मिलिस अकुत नुकसान।
एकर बाद अपन घर लहुटिन, मिल मं लगगे तारा ठोस
अब हड़ताल चलत हे सरलग, उत्पादन मं लग गे रोक।
श्रमिक रखे जे जोड़ के धन, घर बैठे खाइन ओला।
बाद मं बेचिन बर्तन गहना, तंहने मंगिन उधारी।
जब सब राह उपाय उरक गिस, भूख मरत हें बिगर अनाज
जीवन जिये उपाय तपासत, पर तड़तड़ी मं मिल नइ पात।
खलकट भाना पति पत्नी मिल, मिल मं काम करंय सुंट बांध
दुनों परानी खुशी निघरघट, जमों खर्च के होवय पूर्ति।
लेकिन जब हड़ताल मं बइठिन, अब होवत हर जिनिस अभाव
आंख बचावत हवंय अतिथि ले, टोरे परत खर्च सब शौक।
हे गृहस्थ के हालत खस्ता, पर भाना हा लाहो लेत
खलकट तिर हुरमुठी बतावत, जिनिस मंगावत कर आदेश।
सहनशक्ति के नसना टूटिस, खलकट दांत कटर खखुवैस-
“तंय हा क्रांति राह पकड़े हस, ओकर फल मं दुख भुख भोग।
मंय मरमर समझाएंव तोला – सब ला करन देव हड़ताल
पर हम उंकर धरन नइ तोलगी, कार चलन हम पर के चाल।
पर तंय हठी मूड़पेलवी हस, हठकरके छोड़े हस काम
अपन क्रांति ला चल पूरन कर, दुख अभाव ला हंस हंस झेल।
लोहा लेना होय धनी संग, ताकत नइ कंगला के पास
अपन साथ विद्या धन जन रख, तब पुजलग संग टक्कर लेव।
शोषण के विरोध करना हे, शोषक ला तंय बना मितान
न्यायालय मं विजय चहत हस, अधिवक्ता तिर लेव सलाह।
गोरा शासन ला खेदे बर, मदद करिन गोरा विद्वान
बांध बांधना हवय नदी मं, कर उपयोग नदी के जल रेत”।
जलगस मनखे सक्षम दलगिर, अपन ला समझत सबले ऊंच
मगर घिरत दुख रोग फिकर हा, तंहने सुनत डांट उपदेश।
भाना हा गपगपा जथय सुन, खलकट ला बोलिस गुन सोच-
“तोर बात ला मंय फांके हंव, चाल चले हंव बन के ढीठ।
मगर रहस्य नइ आवत – मंगलिन मांईलोगन आय
हमर पक्ष ला लेतिस प्रण कर, हर अभाव के करतिस पूर्ति।
लेकिन हमला दुश्मन मानत, हमर प्रार्थना ला लतियात
हम जतका दुख बिपत पात हन, ओतका ओहर खुशी मनात”।
कान टेंड़ के टैड़क ओरखत, उंकर बात सुन आनंद लेत
पति पत्नी के बात रुकिस तंह, मंद हंसत गिस उंकर समीप।