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गरीबा / तिली पांत / पृष्ठ - 5 / नूतन प्रसाद शर्मा

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जबकि जिंहा मुख्यालय होवय, यने क्षेत्र के मुख्य स्थान
उहां विधायक बर बनवावय – शासन खुद कर खर्च मकान।
काबर के हम जनप्रतिनिधि अन, कतको व्यक्ति हमर तिर आत
ओमन असमय ठइर के सोवंय, उंकर रुके बर होय प्रबंध।”
डेंवा किहिस – “पता चलगे सच – दिया बरत पर घुप अंधियार
जेन दुसर ला सुविधा बांटत, कृषक असन अमरात अभाव।
तुम्हर हाथ मं राइ दुहाई, खुद कर लव पारित प्रस्ताव
जेन जरुरत सुविधा धर लव, तुम्हर हाथ ला छेंकत कोन।”
घना कथय नारी जुड़ाये अस – “सत्य मान हम हन असमर्थ
अपन मांग यदि पूर्ण करत खुद, सब तन ले परिहय बद बान।
कुकरी हा अण्डा कई देथय, मगर खाय नइ खुद हा एक
गाय पियावत पर ला गोरस, लेकिन अपन पाय नइ चीख।
अधिकारी के सक्षमता सुन – कलम के ताकत उनकर हाथ
ओमन ला यदि सुविधा चहिये, सब सुविधा लेवत बिन आड़।
कतको नियम कानून बनाथंय, पूर्ण करत जे उंकरे स्वार्थ
ओकर हम रहस्य नइ जानन, तब उनकर का करन विरोध।
जनता के हित जउन मं होथय, ओकर हम रखथन प्रस्ताव
तब अधिकारी हमला छेंकत – नियम विरुद्ध होत हे काम।”
इंकर गोठ हा ठिंहा गीस तंह जावत बंगला कोती।
घना चलत बेधड़क मगर डेंवा के कांपत पोटा।
डेंवा तुरुत घना ला बोलिस -”तंय बंगला मं अइसे जात
मानों ओहर आय तोर घर, पर मंय हिरदे ले घबरात।
मंय हा सदा तोर घर जांथव, तब घुसरत बिन डर संकोच
तोर समीप जेन मन बोलत, मान घसलहा त्यागत भेव।
पर अधिकारी तिर पहुंचे बर, मोर हृदय ला धुक धुक होत
भइगे तिंही एक अंदर जा, मंय हा रुकत इही स्थान।”
डेंवा हा बाहिर मं बिलमिस, मार बहाना लपझप बोल
ओहर खुश हे जीवन बंच गिस, जइसे गरी ले बपरी मीन।
घना एक मनखे ला देखिस – ठेकादार बगस जे आय
साहब ले मिल हांसत लहुटत, लगत – अमर लिस ध्येय अभीष्ट।
घना विधायक बगस ला बोलिस -”तंय हा दिखत प्रसन्न विभोर
काय बात हे सच सच फुरिया – पाय हवस का भगती ओल?”
बोलिस बगस- “ठीक समझे हस – साहब पास रिहिस हे काम
पर साहब हा झड़य छटारा, टरका के खेदिस कई बार।
मंय हा मंत्री तिर कलपेंव तंह, मंत्री डारिस डंट के दाब
आखिर साहब काम करे बर, मोला सच आश्वासन दीस।”
“मंत्री के तंय खास व्यक्ति अस, तब ओहर दिस आशिर्वाद
तोर काम अब पूरा होहय, मौज करव अउ मजा उड़ाव।”
बाबूलाल तिर घना पहुंचिस, अधिकारी हा स्वागत देत
ओहर भृत्य हुकुम ला बोलिस -”ऊगिस आज मोर तकदीर।
आय विधायक हा किरपा कर, ओकर खाय पिये बर लान।”
हुकुम लान नाश्ता राखिस तंह, घना हा खावत मिट्ठी चीज।
घना हंसत उद्देस्य मं आथय -”साहब मन ला जानत खूब
आवभगत कर मीठ खवाथंय, तंह जुड़ जावत रिश्ता मीठ।
पर एकर ले घाटा खाथन, रख नइ सकन निवेदन मांग
अगर पेल के दुखड़ा रोथन, तब रिश्ता मं करुदरार।
अपन बेवस्ता मं अब आवत, मोर प्रश्न के लान जुवाप –
बांध बने कब नरियर फोरत, यने कोन दिन मुहरुत होत?”
बाबूलाल मुड़ ला धर बोलिस -”कहां के बांध कहां के निर्माण
मोर पास आदेश आय नइ, तब आश्वासन कहां ले देंव!”
घना अचम्भित होवत पूछिस -”छेरकू मंत्री बोलिस जेन
तंय कोलिहा अस भरे हुंकारु, वास्तव मं सब झूठ सफेद?”
बाबूलाल रहस्य ला खोलत -”हम अधिकारी अइसन शेर
मार दहाड़ डरावत सब ला, पर पोतकी मं जान बचात।
बन अजाद जंगल मं किंजरत, सोनकुकुर हा मारत घेर
जंगल छोड़ गांव तन भागत, ग्रामीण दउड़त धर बन्दूक।
यने बने हन हम अधिकारी, पर नइ पाय पूर्ण अधिकार
सब तन ले गुचकेला खावत, शासन रखे हवय कंस छांद।
यदि जनता के काम हा रुकथय, तब ओहर विरुद्ध चिल्लात
मंत्री तिर हम करत प्रार्थना, देवत उहू डांट नुकसान।
मंत्री हा झड़ दीस लबारी – बांध बने भेजेंव आदेश
लेकिन प्रति अप्राप्त हमर तिर, आगू कहां बढ़य कुछ काम!
यदि मंत्री ला लबरा कहितेंव, यदि कट जातिस ओकर गोठ
फोकट कष्ट मोर पर आतिस, बादर बिगर करा बरसात।
मंत्री के मंय पक्ष धरे हंव, विवश बाद बोले हंव झूठ
धोखा खाय मोर कारण तंय, तंय अब बिसर कुजानिक मोर।
जब आदेश मोर तिर आहय, तोर याद करिहंव तत्काल
काम पुरो के सांस ला लेहंव, मंय तोला देवत विश्वास।
अब मंय अपन पोल दुख खोलत – मंय कइसे होवत मजबूर –
थोरिक पूर्व आय जे मनखे, ठेकादार बगस ते आय
ओहर ठेका लीस एक ठक, ओहर काम करा दिस पूर्ण
प्रस्तुत करिस प्रमाण कागजी, पर वाजिब मं काम अपूर्ण।
भेद जान मंय करेंव निरीक्षण, मंय हा पाय शिकायत ठीक
बचे काम ला बगस पुरोवय, अइसे सोच चलेंव मंय चाल।
बिल के रुपिया काट देंव मंय, रोक देंव अंतिम भुगतान
एमां बगस कलबलागे तंह, मंत्री तिर फोरिस सब हाल।
मंत्री दूरभाष ला नेमिस, मोर साथ कर लिस सम्पर्क-
“बगस ला काबर अरझावत हव, ओकर काम पूर्ण कर देव।’
ऊपर ले दबाव जब देवत, तब मंय होवत हंव मजबूर
बगस के उद ला जरा सकत नइ, करना परत निंदनीय काम।