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गरीबा / तिली पांत / पृष्ठ - 8 / नूतन प्रसाद शर्मा

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तोर ले मंय हा किरिया लेहंव, निभे बखत आहंव तिर तोर
तंय निपटाबे जन्म काम ला, आंच पाय झन शिशु नवजात।
वार्ता गुप्त जउन अभि होइस, लाई असन बगर झन जाय
वरना मोर हानि नइ होवय, पर बालक जाहय शमशान।”
जैलू कड़ा बात कहि रेंगिस, पंचम सुनथय धमकी क्रूर
ओहर कार्यालय ला छोड़िस, किंजरत करत बुद्धि ला शांत।
तभे मोंगरा पास ले निकलिस जेहर मुंह पर चिंता।
बिन कोराय हे बाल तेल बिन – आंख ले ढारत आंसू।
मोंगरा के हालत देखिस तंह, पंचम बिसरिस खुद के दाह
खजरी ला खुजाय बर बिसरत, यदि हो जाय घाव जंगलोर।
पंचम कहिथय -”यद्यपि हक नइ, पर के लेंगझा मं धंस जांव
लेकिन तोला देख दुखी अस, प्रश्न चलाय चहत अधिकार।
मानव सदा खुशी ला खोजत, लेकिन उदुप आत तकलीफ
तंय हा मोर पास सच फुरिया – काबर चोंई अस मुंह तोर?”
मोंगरा के आधा दुख खेदिस, पंचम के मधुमिश्रित बोल
तरिया बीच पहुंच जावत तंह, पार होय अटकर मिल जात।
किहिस मोंगरा -”बिपत के करलइ, अतका होय लेख साहित्य
कतको मरंय होय दुर्घटना, मगर हृदय घुसरत नइ टीस।
तंय हा आरो मोर लेत हस, तब सुन व्यथा कान ला खोल –
मोर पुत्र जे दूध ला पीयत, ओला चोरा लेग गिन कोन!
मन ला मार बंधावत ढाढस, लेकिन आत पुत्र के याद
सब घर गली खोज डारे हंव, ओकर दउहा दरसन दूर।
ओकर नाम धरे अब तक नइ, यदपि करत हंव ममता प्यार
ओकर बिगर जियइ अब मुस्कुल, तेकर कारन कहत – दुलार।
मंय आरक्षी केन्द्र जात हंव, होहय उहें प्राथमिकी दर्ज
पुलिस दिही सब किसम मदद तंह, वापिस मिलिहय मोर दुलार।”
पंचम होवत सन्न बात सुन, मुड़ ला खुजा – करत कुछ याद
घटना के सम्बन्ध ला जोड़त, समझ गीस तंह मुड़ी हलात।
कहिथय -”मंय सलाह देवत हंव, बोंगे बिगर करव सम्मान
धीरज रख के घर वापिस जा, ककरो तिर झन कर हड़बोंग।
तंय हा थाना कछेरी झन जा, करव प्रतिक्षा महिना पांच
मिलिहय तोर दुलार हा वापिस, मंय देवत आश्वासन ठोस।”
लहुटगीस मोंगरा तुरंत पंचम ले मिलिस भरोसा।
अब पंचम पहुंचिस मंथिर तिर शोध के करे परीक्षा।
मंथिर आय एक वैज्ञानिक, जउन बनावत औषधि एक
“अमर प्रसाद’ नाम हे ओकर, पिंयर रंग मंदरस अस गाढ़।
पंचम ला मंथिर हा देखिस, तंहने चहक निकालिस बोल-
“मंय चुहाय हंव जउन पसीना, दिखत मीठ ओकर परिणाम।
अमर प्रसाद के गुण ला सुन ले – करिहय जेन दवई उपयोग
विजय मृत्यु पर हे अलखेली, यने अमर रहि जहय सदैव।
दुनिया मं कतको वैज्ञानिक, लेकिन जमों मोर ले हीन
जतका आविष्कार करे हें, मोर शोध सब ले विख्यात।”
पंचम कथय -”घमंड बता झन, मानवता अरि अमर प्रसाद
मृत्यु रोक तंय जन्म ला मारत, करत ज्ञान के गलत प्रयोग।
परिवर्तन क्रम ला झन टरिया, एहर प्रकृति के वरदान
पतझड़ होना बहुत जरुरी, बाद पेड़ धरथय नव पान।
युवा वृद्ध मन औषधि पाहंय, तंहने उंकर मृत्यु नइ होय
पर नव शिशु मन होत अवतरित, जनसंख्या बढ़ जहय अपार।
मानव अन्न बिना लरघाहय, करे निवास मकान अभाव
जुन्ना नवा दुनों मिल लड़िहंय, टूट जहय आपुस के प्रेम।
जब बालक ला वृद्ध हा देखत, तंहने करथय ममता प्यार
तउन वृद्ध हा अमर अमरता, बालक साथ शत्रुता द्वेष।
जुन्ना मन बालक ला बकिहंय- “एमन कार जनम धर लीन
जउन जिनिस उपयोग कर हम, अब दुश्मन मन लेहंय छीन।’
बालक मन डोकरा ला छरिहंय – “वृद्ध भूमि के भार समान
हमरे बर जे जिनिस सुरक्षित, एमन पहिलिच उरका देत।’
मंय हा अतका कहना चाहत -”तंय हा अपन शोध ला रोक
एकर ले बढ़ जहय समस्या, ककरो नइ होवय कल्याण।’
तोला रटरट सतम जोहारेंव, तोला गड़त यथा तिरछूल
करुदवई हा जीवन रखथय, पर रोगी करुवावत देख।”
मंथिर कथय – “जलत लकड़ी अस, मोर उच्च प्रतिभा ला देख
तोर ले मंय हा खूब गुनिक हंव, सिरी गिरे कहि करत विरोध।
तंय कतको आलोचना करबे, मोर राह पर बनबे आड़
पर मंय अपन जिद्द पर कायम, करिहंव पूर्ण अपन उद्देश्य।”
पंचम पूछिस – “सत्य बता तंय, अमर प्रसाद होत तइयार
कतिक सफलता पाय अभी तक, श्रम बजाय कतका अउ शेष।?”
मंथिर बोलिस -”मोर दवई हा, प्रतिशत साठ सफलता पाय
यद्यपि सब उद्देश्य पूर्ण नइ, पर प्रभाव हा आस बढ़ात
अभी के औषधि जेहर लेहय, ओहर अमराहय गुण श्रेष्ठ –
ओला कभू रोग नइ घेरय, यदि अजार ते भगिहय दूर।
कतको मरत परिश्रम करिहय, मगर थकान देंह ले दूर
मुंह के रंग चमक हा कायम, यने स्वास्थय हा बिल्कुल टंच।
मंय अभि छेरकू तिर जावत हंव, ओला देहंव अमर प्रसाद
यदि प्रसन्न छेरकू हा होवत, शासन ले देवा दिही इनाम।
मंथिर हा मंत्री तिर पहुंचिस, करत दवई के चर्चा।
छेरकू ला औषधि दिस फिर पीयत हे ओकर मानी।
छेरकू कथय -”करत मंय दौरा, शहर पहर किंजरत दिन रात
थक जाथंव मिहनत के कारन, रथय स्वास्थय हा सदा खराब।
अमर प्रसाद पिये हंव मंय अभि, अगर बताहय ठीक प्रभाव
अपन काम मं सदा उपस्थित, मिटिहय तन के चिंता रोग।