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गरीबा / तिली पांत / पृष्ठ - 9 / नूतन प्रसाद शर्मा

जेन आस धर के आये हस, शासन तिर करवाहंव पूर्ण
आविष्कार करेस हितवा बन, जन कल्याण धरे हस राह।
दवई – असर हा ठीक बतावत, लगत देह मं नवस्फूर्ति
मंत्री बोलिस- “दवई हे उत्तम, मोर देह के मिटिस थकान।
आज अखण्डानंद के प्रवचन, ओकर पास जात हंव शीघ्र
स्वामी जी के दर्शन करिहंव, बनही जीवन सफल कृतार्थ।”
शहर बीच मं एक ठौर हे – जेहर आय बड़े मैदान
उहां गड़े पण्डाल बहुत ठक, रेम बांध के पहुंचिन लोग।
छेरकू गीस मंच मं चढ़ गिस, माइक ला धर हेरिस बोल –
“तुम्मन थोरिक करव प्रतीक्षा, तंहने आत अखण्डानंद।
ओहर आय बहुत मुस्कुल मं, करके कृपा राख दिस मान
आज कथामृत पान करव अउ, जीवन अपन करव कल्याण।”
पिनकू घलो उपस्थित होइस, तंह टैड़क हा आइस पास
ओहर जब पिनकू ला देखिस, मुंह लुकाय बर करत प्रयास।
पिनकू एल्हिस -”काबर छरकत, कार मोर ले बहुत नराज
या तंय मोला नइ पहिचानस, खोल भला तंय सत्तम राज?
“शांतिदूत’ जहरी के दैनिक, उंहचे तंय हा करथस काम
उही पत्र के काम करे बर, पत्रकार बन के तंय आय।
अउ तंय हा ओ पत्रकार अस, कष्ट लाय हस ऊपर मोर
पिनकू हा चोरहा अपराधी – अइसे बोल धंसा तंय देस।?”
टैड़क कथय -”भेद हा खुलगे – तंय कर लेस मोर पहिचान
तोला फोकट जेन फंसाइस, वाकई उही व्यक्ति मंय आंव।
लेकिन मंय नंगत शर्मिन्दित, तोर साथ हो गिस अन्याय
ओकर फल ला खुद भोगत हंव – मिल नइ पावत जेवन छांव।
हमर देश ला निहू जान के, शत्रु राष्ट्र हा लड़ई उठैस
ओकर नसना ला टोरे बर, भारत के सैनिक मन गीन।
उही बखत जहरी हा नेमिस – आय देश पर बिपत अनेक
घर घर पहुंच उघा तंय चंदा, रुपिया अन्न यने हर चीज।
लेकिन एक बात सुरता रख – झन करबे तंय गबन के काम
वरना तोर हाथ पकड़ाहय, मुसटा जहय मोर तक घेंच”।
जहरी के सलाह हा जंच गिस, मंय हा गेंव बहुत झन पास
अपन हाथ ला लमा देंव तंह, एको झन नइ करिन हताश।
अपन शक्ति भर सब झन मन दिन, रुपिया कपड़ा सोन अनाज
बड़हर मन के बात पूछ झन, चंदा दीस दलीद्र समाज।
सबो डहर ले सकला गिस तंह, जहरी के भोभस भर देंव
लेकिन ओकर तिर ले मंय हा, दसकत अउ रसीद नइ लेंव।
चन्दा ला जहरी ला हड़पिस, बंगला बनवा लिस बड़े जान
जब मंय हा हिसाब लां पूछंव, मोला एल्ह करय अपमान।
छेरकू पास गेंव मंय दउड़त, लेकिन दीस कहां कुछ ध्यान
उहू खाय चन्दा मं प्रतिशत, तब फिर कहां ले देतिस ध्यान!
कब तक ले रहस्य हा छुपतिस, जगजग ले खुलगे सब भेद
मंय हां भ्रष्टाचार करेंव नइ, लेकिन पत पर परगे छेद।
शांतिदूत ले दूर भगत हंव जहरी अब नइ संगी।
प्रात& खाथंव – लांघन संझा, भोगत आर्थिक तंगी।
टैड़क अपन बिपत ला फोरिस, पाठक मन अब देखव मंच
एक व्यक्ति मंच सम्हालिस, आय जेन हा ज्ञानिक संत।
पहिरे हवय लकलकी कपड़ा, मुसकावत लुभाय बर मंद
माथ लगाय त्रिपुण्डी चंदन, ओकर नाम अखण्डानन्द।
स्वामी हा सब झन ला देखिस, मानों हरत उंकर सब शोक
अपन आंख ला बंद करिस अउ, धर के राग पढ़ श्लोक-
“भवानी शंकरौ वन्दे श्रद्धा विश्वास रुपिणौ।
याम्यां विना न पश्यन्ति सिद्धा& स्वान्तस्थमीश्वरम्।
वन्दे बोधमयं नित्यं गुरुं शंकर रुपिणम्।
यमाश्रितो हि वकोऽपि चन्द्र& सर्वत्र वन्द्यते।
जब श्लोक उरक गिस तंहने, धीर लगा के खोलिस आंख
हाथ हला के प्रवचन देवत, लोगन पर जमाय बर साख –
“तुम्मन टकटक ले जानत हव – भौतिक अउ अध्यात्म मं भेद
भौतिक जिनिस सकेलत मर मर, मगर अशान्ति करत खुरखेद।
जहां देखथंव बड़हर मन ला, ओकर ऊपर आथय सोग
चकल बकल ऊपर मं दिखथंय, पर अंतस रहिथय दुख रोग।
करत रात दिन झींका पुदगा, हाय हाय मं समय हा ख्वार
मरे बाद दर भूमि ला पाथय, जतका कंगला के अधिकार।
धनवन्ता ला सब झन कहिथंय – पापी शोषक क्रूर गद्दार
रेटहा तक हा मान करय नइ, बन जाथय धरती बर भार।
मोर ठोंक ला अंतस धर लव – धन ले भूल करव झन प्रेम
खुले हृदय ले दान करव अउ, लोभ मोह ला राखो दूर।
सात्विक आध्यात्मिक अपना लो, भौतिकता ला शत्रु समान
तंहने स्वयं शांति सुख आहय, जीवन चलिहय धर के नेम”।
सन्त इही उपदेश ला देइस, जनता सुनिस कान ला टेंड़
जब प्रवचन हा खतम हो जाथय, तंहने चढ़िस चढ़ौत्री मेड़।
मनसे मन रुपिया देवत अउ, परत सन्त के धोकर के पांव
सन्त सकेलत टप टप रुपिया, देत भक्त ला आशिर्वाद।
पिनकू करत विचार अपन मन – स्वामी बने जउन इंसान
खोरबहरा ए मंय जानत हंव, ओकर साथ मोर पहिचान।
जहां संत ला पैस अकेल्ला, तंहने पिनकू करिस प्रणाम
कहिथय – “आज धन्य मंय होएंव, सुन के तुम्हर ज्ञान उपदेश।
तुम्हर साथ मंय रहना चाहत, धरना चहत तुम्हर अस काम
लेकिन पहिली साफ बतावव – खुद के पता नाम अउ धाम?”
बोलिस संत -”आड़ तंय झन बन, का करबे तंय हा सब जान
रमता जोगी बहता पानी, आज इहां कल दूसर ठौर।”