भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गरीबा / धनहा पांत / पृष्ठ - 11 / नूतन प्रसाद शर्मा

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:52, 7 जनवरी 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नूतन प्रसाद शर्मा |संग्रह=गरीबा /...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तभे उही डायल बइला हा, नांगर झींकिस लगा के शक्ति
सनम हा हंस झंगलू ला बोलिस -“स्वयं देख बइला के हाल।
मंय हा तोर साथ गोठियावत, तउन ला एहर मारिस रोक
बचे बुता ला झप पुरोय बर, आगू तन लेगत हे पांव।”
झंगलू किहिस – सच बताए हस, ढचरा मारत हे धन तोर
पहली बइठगीस डायल अस, अब लेगत नांगर ला झींक।
अच्छा भैय्या, अपन काम कर, मंय हा चलत हंव अपन राह
जादा बखत व्यर्थ बिलमे मं, काम प्रेम मं अड़चन आत।”
झंगलू हा विद्यालय चल दिस, सनम अपन बूता मं व्यस्त
पुत्र गली के सुध हा आइस, तंह झरिहारिन मंगिस सलाह –
“ए बाबू के ददा, सुन भलुक, काम करे बर जब मंय आय
मोर गली हा नींद मं डूबे, घटकत रिहिस घोटोर कर नाक
पर अब नींद उमचगे होहय, या फिर भूख मं सपसप पेट
ओकर देखभाल बर जावत, इहां बिलमना बिल्कुल व्यर्थ।”
सनम हा तुरुत दीस समर्थन -“तंय हा निश्चय लहुट मकान
बासी खाय विचार आज नइ, रांध के रखबे जेवन तात।”
“मंय हा भात ला बना देहंव, मगर साग मं काय बनांव?
घर मं कुहुच साग हा नइये, ओकर बढ़े हे घलो दाम।
जिनिस बिसाय के मन हा होवत, पर बिसाय बर हिम्मत पश्त
लगथय – सिर्फ धनी मन जीहंय, ओमन बिसा लिहीं हर चीज।”
“हत रे जकही, काय कहत हस, मनसे पास होय कई शक्ति
भोजन पानी रखय अपन तिर, अन्न ला रखय लौह गोदाम।
मनसे मन हा खूब भूखभरंय, अइसे क्रूर कसम ला खाय
पर प्रकृति हा बहुत दयालू, सब पर छाहित एक समान।
रिता ओदर ला जीवन देथय, रोगीबर हे दवई – प्रबंध
पंगु ला मिलत मदद सहारा, प्रकृति हा ममता के खान।”
सनम हा तुरुत इंगित करथय, जेतन रिहिस चरोटा पेड़
कहिथय – “साग साग चिल्लावत, ओतन देख साग अउ साग।
टोर चरोटा भाजी ला झप, ओला सुघर पका के राख
काम बंद कर मंय घर आवत, तंह जेवन लेहंव भर पेट।”
झरिहारिन हा कहना मानत जाथय एक जगह चिकनौर
उहां गंसागस उगे चरोटा, जिंकर केंवरी पत्ता मौर।
झरिहारिन हा भाजी टोरत, ओली अंदर रखत सम्हाल
सोसन भर भाजी टूटिस तंह, चलत मकान तेज चल चाल।
कुरिया घुसर जांचथय स्थिति-पुत्र गली रोवत हे जाग
बालक गली ला दूध पियावत, एकर बाद सुधारत साग।
भाजी ला झर्रस झर्रस पिट, महिन करिस हंसिया मं काट
सफ्फा जल मं धोइस तब फिर, बेले अस रगड़िस रख खाट।
नरम बनाय चुरोइस गुदगुद, मिरी बघार सुंतई अक तेल
आखिर समय नून ला डारिस, साग बनाय के खेल समाप्त।
ओकर साथ भात हा चुरगे, सनम पहुँच गिस खस लरघाय
झरिहारिन हा जेवन परसत, ताकि मरद हा गप गप खाय।
कभू अन्न नइ देखिस तइसे, सनम सपेटत आँख नटेर
भाजी भात बड़े कंवरा धर, मुँह ले लेगत पेट अबेर।
जल्दी कारण अटक गे तंहने लिलथय पी के पानी।
भोजन उरक-थार के पइंया परथय उठती खानी।
कहिथय सनम- “खाय ओंड़ा तक, कभू खाय नइ जइसन आज
कतेक चहेटेंव साग चरोटा, वर्णन करे मं आवत लाज।
जरमन बर्तन अउर चरोटा, अगर बेसरम पेड़ अभाव
कोन किसम जीवन हा निभतिस, पट पट ले मर जतिन गरीब।”
अपन मकान ले बाहिर आथय, गमछा मं पोंछत मुंह हाथ
झड़ी धान-चरिहा बोहि लावत, पाँच व्यक्ति हें ओकर साथ।
सनम किहिस- “थोरिक तंय रुक जा, धान कहाँ ले लावत बोल
ककरो तिर ले चलऊ लाय हस, नगद नोट मं लात खरीद?”
झड़ी बताइस- धान मंय लावत, एला धनसहाय हा दीस
गांव मं एक झन उही दयालू, करथय मदद कष्ट के बेर।
खेत के निंदई करा डारे हंव, देना हवय श्रमिक ला धान
पत्नी मोर जउन बिस्वासा, ओहर घलो बहुत बीमार।
आधा धान श्रमिक ला देहंव, बचत मं खटला के उपचार
एकर कर्जा ओ दिन छुटही, नवा फसल आहय जे टेम।
खटला पास पैंकड़ा सुंतिया, छूट दुहूं ऋण गहना बेच
मंय हा सत ईमान से बोलत, ऋण ला सीत असन डर्रात।”
झड़ी हा अपने रद्दा चल दिस, मुढ़ीपार के पुसऊ आ गीस
सनम किहिस- “आ बइठ मोर तिर, अपन गांव के फुरिया हाल?”
पुसऊ किहिस- “जे खबर इहां के, मुढ़ीपार तक के समाचार
परहा लगत- बियासी होवत, उहां घलोक काम इहि जोर।
हां, यदि मोर खबर ला पूछत, बाप के फर्ज पूर्ण कर देंव
मोर बड़े छोकरी धरमिन के, बर बिहाव ला निपटा देंव”
सनम हा अड़बड़ हर्षित होथय- ” रिहिस तोर मुड़ बड़ जक बोझ
पुत्री के बिहाव निपटिस तंह, फिकर खतम उतरिस सब बोझ।
समधी अउ दमांद का करथंय, कोन किसम हे आर्थिक हाल
धरमिन हा सब सुविधा पावत, या ओकर होवत छे हाल?”
पुसऊ कथय- “असरु समधी हा, छुईखदान मं हे विख्यात
दूधे खाथय- दूध अंचोथय, भरे बोजाय हे धन सम्पत्ति।
अधुवन कथा सुनस तंय काबर, जमों कथा ला सुन ले आज-
मोर दू टूरी धरमिन- लछनी, एला तंय जानत हस साफ।
धरमिन के बिहाव हा निपटिस, पर लछनी हा बिगर बिहाव
धरमिन के आदत गुण ला सुन, तारिफ लइक मधुर शालीन।
जइसे नाम चाल गुण उसनेच, ना मुंह चनचिन- ना मुंह बांड़
सेवा जतन करे मं अगुवा, कभु नइ बइठय मुहूँ ओथार।