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गरीबा / धनहा पांत / पृष्ठ - 14 / नूतन प्रसाद शर्मा

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धन के पीठ ला सार के कथय -“मनसे के खोलत मंय पोल
ऊपर ले हम स्वागत करथन, पर अंदर ले करथन घात।
हम मनसे मन बुद्धि श्रेष्ठ अन, एकर साथ सहृदय आन
पर बिन स्वारथ मदद नइ करन, मदद के बदला चाहत लाभ।
अगर भूल से देत पलोंदी, तब हम चहत – होय तारीफ
पर – सहायता के बदला मं, हमला होय अर्थ के लाभ।
तुम पशु ला बिन बुद्धि कहन हन, पर वास्तव मं उल्टा बात
तुम्मन सेवा दया करत हव, ओकर एवज मंगव नइ लाभ।
वास्तव मं मनसे मन स्वार्थी, तुम पशु मन उपकारी आव
हमर विचार काम हा नीचा, तुम पशु मन कर्त्तव्य मं श्रेष्ठ।”
धरिस गरीबा ला दुखिया हा, ताकत भर कबियात उवाट
लैस गरीबा ला खुद के घर, ढलगा दीस बिछा टप खाट।
आगी बार गरम पानी कर, बुड़ो निकालत साफ कपास
घाव के बहत लहू ला धोइस, लेत गरीबा नइ कल्दास।
पूरा तन भर डोमटा सूजन, चर चर उपके करिया लोर
घी गोंदली मं दुखिया सेंकत, ताकि दरद झन मारय जोर।
टप टप ताते तात मड़ावत, पात गरीबा हलू अराम
थोरिक बाद नटेरत सब बल, खंइचत सांस पेट ले लाम।
दुखिया कथय -“लगत कतका पन, का दुख होवत देव जुवाप
कोन आदमी तोला दोंगरिस, काय करे तंय काम खराब?”
दुखिया बती जुवाप ला मांगिस, लगिस गरीबा कथा बतान
थोरिक बाद सेंकई ला रुकवा, जाय चहत हे अपन मकान।
दुखिया कथय -“बिलम अउ थोरिक, मंय हा करत हकन के सेंक
खरथरिहा, तंय टंच असन बन, तोला नइ छेंकव कर टेक।”
दुखिया के सुभाव ला परखिस, तहां गरीबा होत प्रसन्न
करत प्रशंसा मन के अंदर, पर मुंह खुलगे अपने आप –
“तोर नाम दुखिया हे तइसे, देखस नइ पर के तकलीफ
यदि ककरो पर बिपत हा आथय, देथस मदद बिपत कट जाय।”
दुखिया कथय -“गलत बोलत हस, मोला व्यर्थ चढ़ात अकास
अभिच प्रशंसा करत तउन ला, बाद मं करते इहि विश्वास।”
सुर के साथ दुनों बोलत तब, पहुंचिस भीड़ करत चिरबोर
ओमन क्रोधित दिखत भयंकर, अंदर मं निंगगिन दोर दोर।
चोवा कथय – “कहां घुसरे हस हमर गरीबा दादा।
कतेक निघरघट बली लड़ंका तोर हेरबो खादा।
भगवानी बोलिस -“देखव तो – लड़ई करिस धनवा के साथ
पर घर घुस पत लुटे चहत अब, झींकत हे दुखिया के हाथ।
नथुवा कथय -“इहां झन बोलव, तर्क वितर्क रखव तुम छेंक
एहर खुद ला दुखी बताहय, खसक जहय फट धोखा मार।
एला ग्राम सभा मं लेगव, उंहचे घालुक दिही जुवाप
मरत दोहन वाजिब उछरांबो, उफलय बदकरमी के पाप।”
आंख नटेर गरीबा देखत -“एमन काय लगावत दोष
मोला कुछुच उमंझ नइ आवत, काबर करत व्यर्थ के रोष?”
थोरिक कहना चहत गरीबा, मगर भीड़ पर चढ़े हे जोश
जब दिमाग मं गर्मी रहिथय, समझत कहां न्याय अन्याय!
करिस गरीबा हा विरोध कंस, तभो चिंगिर चांगर धर लीन
मरे मरी अस घिरलावत हे, बइठक बीच लान पटकीन।
जउन व्यक्ति हा कभू आय नइ, ओला कतको देव अवाज
पर ओमन लफड़ा सुन दउड़िन, खावत अन्न के करदिन त्याग।
करत बइसका सइमों सइमों, बोलिस भुखू लगा कंस जोर –
“भाई बहिनी, होव कलेचुप, काम बीच पारो झन आड़।
अगर जेन ला कुछ गोठियाना, बिन भय फोरय अपन बिखेद
हरचंद असन नियाव हा टुटही, मां मउसी सहि भेद नइ होय।”
सोनू बोलिस अमर के अवसर -“छोटे बड़े देव सब कान
अतियाचारी बढ़त दिनों दिन, लाहो लेत कलऊ बइमान।
जांचव तुम गरीबा के करनी – जउन दिखब मं साऊ नेक
ओहर मोर टुरा ला कुचरिस, व्यर्थ – बिना कारण कर टेक।”
धनसहाय हा केंघर के बोलिस -“मोर ददा हा बोलत ठीक
लड़िस गरीबा व्यर्थ मोर संग, जबकिन मंय हा बिल्कुल शांत।
ओहर मोला दोंह दोंह कुचरिस, मुड़ ले बोहत छल छल खून
तुम्मन अपन आंख ले देखव, अउ गवाह ले सच ला पूछ।”
सोनू हा धनवा ला बोलिस -“बंद राख तंय अपन जबान
तंय निर्दोष बताबे खुद ला, मगर तर्क हा अस्वीकार।
साक्षी मन के बात हा चलिहय, प्रस्तुत करिहंय सतम प्रमाण
उंकर तर्क हा मान्य हो सकथे, ओमन ला अब बोलन देव।”
सोनू हा ग्रामीण ला बोलिस -“सुनव गरीबा के सच हाल
धनवा हा बचपन के मितवा, तेला कुचरिस क्रूर समान।
तंहने अंकालू के घर घुस, पत लूटे बर करिस प्रयास
यदि मंय बुढ़ुवा कहत लबारी, पूछव साक्षी ला सच हाल।”
झड़ी हा बउदा ला पूछिस – “झगड़िन धनसाय गरीबा।
तंय खमिहा अस उहां रेहेस अब फुरिया सत्य कहानी।
बउदा किहिस – “निसंख आंव मंय, कोन सकत हे दपकी मार!
मंय ककरो तिर घूंस खाय नइ, जेमां मंय हा बोलंव झूठ।
घटना जगह जउन देखे हंव, ओला मंय बतात हंव साफ
धनसहाय हा गरूवा मनखे, ओकर एकोकन नइ दोष।
यदि ओहर हमला नोखियातिस, खातिस मार गरीबा खूब
हम्मन शांति धैर्य पर निर्भर, मगर गरीबा मं अति क्रोध।”
झड़ी हा भगवानी ला पूछिस -“तंय अंकालू के घर गेस
उहां गरीबा रिहिस उपस्थित, देखे हवस उहां के हाल।
करिस गरीबा हा का करनी, ओहर दुश्चरित्र के नेक
ग्राम सभा मं सच सच फुरिया – निर्भय बन के बिगर दबाव?”