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गरीबा / धनहा पांत / पृष्ठ - 15 / नूतन प्रसाद शर्मा

भगवानी बइठक ला बोलिस -“मंय जब दुखिया के घर गेंव
उहां रिहिन चोवा नथुवा मन, उंकर साथ कतको ग्रामीण।
दुखिया के इज्जत लूटे बर, उहां गरीबा करत प्रयास
एकोकन अनर्थ झन होवय, लाय गरीबा ला हम झींक।”
केजा हा घलो सभा मं हाजिर, किहिस गरीबा ला भर क्रोध –
“साक्षी मन के बात सुने हन, अब तंय अपन पक्ष ला बोल।
मगर ध्यान रख सत्य बताबे, क्षमा दान करबो मन सोग
यदि एकोकन करत छमंछल, हरदम बर बनबे विकलांग।”
अपन बात ला रखत गरीबा -“घटना जउन सुनव विस्तार
गंगा बीच झूठ नइ बोलंव, भले गांव ले खुंटीउजार।
पहट निंगाय खेत मं धनवा, स्वयं खड़े रहि बिकट चरात
गरुवा ला भगाय बर बोलेंेव, तंहने जबरन लड़ई उठैस।
नौकर संग मिल मोला दोंगरिस, अपन बचाय मंहू कुचरेंव
झगरा बाद जहां मंय लहुटत, मुरछा खा भर्रस गिर गेंव।
दुखिया बती सोग मर कबिया, लेगिस घर बचाय बर जान
मोला सेंकत तेन बीच मं, भीड़ घुसर गिस भितर मकान।
हाथा बैंहा कहां धरे हंव, जेमां लगत गलत इल्जाम
अगर झूठ गोठियात बचे बर, दुखिया धरय बिगर भय नाम।”
दुखिया खूब सोच के बोलिस -“कहत गरीबा हा सच बात
हम महिला मन दोष मढ़त हन, नर के होत चरित्तर नीच।
महिला के इज्जत ला लूटत, होत उंकर पर अत्याचार
महिला सहानुभूति ला पावत, परत पुरूष पर हर एक दोष।
मगर पुरूष मं कहां हे ताकत, महिला ला छू सकत बलात!
महिला हा स्वीकृति देवत तब, पुरूष के साहस हा बढ़ जात।
याने मंय कहना चाहत हंव – हवय गरीबा हा निर्दोष
गलत प्रयास भूल नइ जोंगिस, किरिया खा के सच कहि देंव।”
केजा ला आपत्ति हो जाथय, ओहर कथय व्यंग्य के साथ –
“दुखिया तोला वाह वाह हे, खूब कमाल करे हस आज।
अगर गरीबा दोसिल होतिस, बपुरा हा होतिस बदनाम
तंय हा दुश्चरित्र कहवाते, तोर ददा के इज्जत नाश।
आज गरीबा ला बचाय हस, ओला तंय कर देस बेदाग
एकर संग मं तहूं सुरक्षित, तंय हा चरित्रवान बन गेस!”
अब सोनू मण्डल सन्नावत -“मंय गोठियात तेन सच बात
देख – गरीबा अउ दुखिया मन, मुड़ देके पेलत सब गोठ।
सुन्ता प्रेम हवय इनकर मं, आज जान हम उदुप अवाक
अंकालू के इज्जत जाही, कटा के रहही ओकर नाक।”
अंकालू के मइन्ता भड़किस, कथय गरीबा ला कर क्रोध –
“तंय हा परे डरे बेर्रा अस, काटत हस हम सब के नाक!
ऊपर ले सिधवा अस दिखथस, पर किराय भितरंउधी चाल
जतका तोर खराय जवानी, बीच बइसका दुहूं निकाल।”
अंकालू के क्रोध ला देखिस, तंहने भुखू करत हे शांत –
“तंय आगी मं अभी कूद झन, रख दिमाग ला बिल्कुल शांत।
आय पंच मन न्याय करे बर, ओकर दुर्गति होहय आज
पता गरीबा के लग जाहय, कतेक असन बकचण्डी छाय!”
सोनू बोलिस – “सुन अंकालू, तोर टुरी – मोर टुरी समान
ओकर चाल ले महूं दुखी हंव, काकर तिर मं करों बखान!
यद्यपि मंय प्रतिशोध ले सकथों, मार गरीबा ला बिछा जमीन
पर अइसन मं न्याय मिटाहय, सुघर राह के खुंटीउजार।”
सब मनसे ला आरो देइस -“अपन विचार कहव तुम साफ
बुता बनात गरीबा के – या, कहि निर्दोष – करत हव माफ?”
सब ग्रामीण सुंटी बंध बोलिन – “देव गरीबा ला कंस दण्ड
ओहर कर्म के फल ला चीखय, क्षमा पाय झन ओकर पाप।”
किहिस झड़ी हा – “अरे गरीबा, मोर न्याय सुन खोल के कान
धनवा साथ लड़े हस फोकट, आज जमाय कुजानिक काम।
यदि हम तोला क्षमा करत हन, तोर नीति सुधरन नइ पाय
तेकर कारण दण्ड देत हन, ताकि खूब डर झिंकस लगाम।
दुखिया साथ अगर गोठियाबे, टोर देब हम मुंह ला तोर
मुंह करिया कर हमर गांव ले, भग कहुंचों सुन्तापुर छोड़।”
बन्जू हा खुश हो के बोलिस -“बिगर संरोटा झड़े नियाव
मुरूख गरीबा अस मनसे ला, गांव ला छोड़वा के टसकाव।”
नवागांव ले सुध्दू लहुटिस, मार पाय नइ थोरको सांस
खबर ला सुन बइठक तिर दउड़िस, मनसे मन से मंगत जुवाप।
कहिथय – “मंय हा कुछ नइ जानंव – तुम सत्तम समझाओ।
करिस गरीबा काय कुजानिक – मोर पास फुरियाओ।
सब बिखेद ला चोवा फोरिस, सध्दू सुनिस कान ला टेंड़
कहिथय -“काबर सोग मरत हव, एला भेज देव अभि जेल।
कार जबरवाली ककरो संग, लड़िस गरीबा बन हुसनाक
एकर पक्ष लेंव नइ मंय कभु, नाक काट रख दिस चरबांक।”
कथय गरीबा – “ददा, मोर सुन, मंय हा हंव बिल्कुल निर्दोष
मछरी अस फंस गेंव जाल मं, होत नमूसी – पत पर घात।”
सोनसाय हा जोर से घुड़किस -“कहत गरीबा बिल्कुल झूठ
मात्र इही एक झन सतवन्ता, लबरा हन हम बुढ़ुवा ठूंठ!
सुन सुध्दूु, तोर टुरा ला खेदत, एला हम छोड़ात हन गांव
मोर एक झन के आज्ञा नइ, सब मिल टोरिन एक न्याय।”
सुध्दूु बायबियाकुल होवत, हवय गरीबा पर अति प्रेम
सुख दुख सहि बचपन ले पालिस, पुत्र छुटत हे मरे के टेम।
सुध्दूु किहिस -“अगर लइका हा, गंदला कर देवत हे जांग
तब सियान हा कभु काटय नइ – अपन मया के कोमल जांग।
अगर गरीबा गल्ती कर लिस, ओकर बल्दा जुरमिल लेव
जमों ओसला टूट जाय कहि, डांड़ लेव जतका मन दाम।