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गरीबा / राहेर पांत / पृष्ठ - 1 / नूतन प्रसाद शर्मा

राहेर पांत

जब समाज मं शांति हा बसथय शांति पात जिनगानी।
दुख शत्रुता अभाव भगाथय उन्नति पावत प्रानी।
मारपीट झगरा दंगा ले होवत कहां भलाई।
मंय बिनवत हंव शांति ला जेहर बांटत प्रेम मलाई।
लगे पेड़ भर मं नव पाना, दसमत फूल फुले बम लाल
लगथय – अब नूतन युग आहय, क्रांति ज्वाल को सकत सम्हाल!
अब परिवर्तन निश्चय होहय, आत व्यवस्था मं बदलाव
पर मंय साफ बात बोलत हंव – नइ दुहरांव पूर्व सिद्धान्त।
याने महाकाव्य मं मंय हा, होन देंव नइ हत्या खून
जीवन जीयत बड़ मुश्किल मं, तब बढ़ जाय ऊन के दून।
रस वीभत्स लहू शव हत्या, यदि देखे बर किरिया खाय
पढ़ लव रामायण महाभारत, आत्मा ला कर लव संतुष्ट।
दू ठन विश्व युद्ध देखे हन, मुड़सरिया मं तीसर युद्ध
हत्या कथा फेर यदि लिखिहंव, देहूं कहां शुद्ध साहित्य?
बर्लिन के दीवार हा टूटिस, तब मंय घलो रखत विश्वास-
क्रांति हा शांति ला धर के आहय, ककरो जीव हानि नइ होय।
धनसहाय हा मन मं सोचत – नौकर मन हा छोड़िन काम
मोर दुवारी तक नइ झांकत, दूर ले देख के मुंह टेंड़ियात।
परे खार मं सब बिरता हा, फल मन हा पक के तइयार
बिना श्रमिक कोन लू के लानय, खार मं अन्न हा होत खजार।
अपन स्वार्थ के पूर्ति करे बर, मंय हा चलव एक ठक चाल
अगर झुके ले काम सधत हे, एमां कहां कटत हे नाक!
तुरुत गरीबा ला बलवाथय, अैकस गरीबा ओकर पास
धनवा ओकर स्वागत करथय, मुंह मं प्रसन्नता ला लान।
कहिथय -”बइठे बर नइ आवस, हम अउ तुम बचपन के मीत
हवय तोर बर हिरदे फरिहर, मोर बात पर कर परतीत।”
परिस गरीबा हा अचरज मं – धनवा हा शोषक बटपार
कुकुर असन पर ला दुतकारय, खेदय तुरुत डेरौठीपार।
कइसे गिरगिट अस रंग बदलत, मिट्ठी मधु अस ढिलत जबान
लगथय – एमां स्वार्थ घुसे हे, तभे मोर होवत सम्मान।
“जीवन भर मं अभी अचानक, कइसे करे मोर तंय याद
काय बात हे खोल के फुरिया, एको कनिक कपट झन राख।”
रखिस गरीबा वाक्य कड़ा अस, ताकि वजह हा सम्मुख आय
धनवा के दिल बान हा परगे, पर बोलत हे स्थिर बुद्धि-
“नौकर मन ला उभरा के तंय, काम छोड़ा के बइठा देस
मोर विरुद्ध चाल रेंगत हस, काबर करत मोर संग रार?
परे खार मं ठाहिल बिरता, गरुवा मन राहिद उड़ियात
वन के पशु बिरता पर घोण्डत, चिरई घलो खावत हें फोल।
याने जेन अन्न सकलातिस, कतको झन के रखतिस प्राण
तेहर ख्वार खार मं होवत, एहर कहां बुद्धि के काम!”
“लाख बखत समझाएन तोला, लेकिन कहां देस तंय ध्यान
जहां क्रांति के आगी बरथय, सहना परत बहुत नुकसान।
मितवा, मोर सलाह मान तंय, सुम्मतराज ला कर स्वीकार
ओकर तिरस्कार नइ होवय, मंझनकुन जे आवत लौट।”
“तुम्हर असन यदि मिहनत करिहंव, रहन सहन यदि आम समान
मोर कोन इज्जत ला करिहय, पल पल मं पाहंव अपमान?”
“मानव मानव भेद कहां कुछ, धनवा तंय चल सबके साथ
समता सिवा राह नइ दूसर, विश्व शांति बर औषधि एक।
कर पतियारो बिगर उदेली, तज हुम्मसही झगड़ा रार
वरना तोर घलो उहि दुर्गति – जइसे क्रूर जार परिवार।”
धनवा करत विचार अपन मन – यदि ओरझटी करत मंय खूब
तब नुकसान मोर खुद खत्तम, तेकर ले मंय अब नंव जांव।
जब विपरीत वक्त हा आवय, मानव सहय वक्त के मार
समय खराब सरक जावय तंह, अपन बात राखे इंसान।
“एक के का चलिहय सौ सम्मुख, चलिहंव तुम सुझाय जे राह
बिरता ला सकेल के लानव, राखव खावव एक सलाह।
तंय समझाय मरत ले मोला, अंतस भींगगिस सब बात
सुम्मत राज ला मंय स्वीकारत, मोर बात पर कर विश्वास।”
धनवा हा जब अइसे बोलिस होत प्रसन्न गरीबा।
सोचत – लउठी नइ टूटिस पर मरगे बिखहर डोमी।
ओतिर ला अब तजत गरीबा, कहिथय ग्रामीण मन के पास-
“एको कतरा लहू गिरे बिन, होगिस सफल जमों उद्देश्य।
धनवा रजुवा गिस सामिल बर, चहत कमाना सब संग जूट
खार के बिरता कार बोहावय, चलव अन्न ला लानव काट।
ओला मींजन कूटन सब मिल, तंहने रखन सुरक्षित ठौर
जे मनसे ला होय जरुरत, ओहर अन्न लेग के खाय।”
अब ग्रामीण फसल काटे बर, झाराझार होत तैयार
तभे करेला के सांवत हा, अैरस गरीबा तिर तत्काल।
कहिथय -”शुभ संदेश देत हंव – नेवता नेवते बर मंय आय
दसरूके शादी हा निश्चित, अब संबंध टूट नइ पाय।
मरिस अंजोरी तेला जानत, ओकर बहिनी दुकली जेन
ओकर जोड़ जमत दसरूसंग, तंय हा समझ गोठ ला साफ।
दसरूतुंगतुंगाय पहिलिच ले, पर दुकली हा परगे सोच –
“मंय हा सदा शहर मं रहिथंव, खटक पाय नइ कुछुच अभाव।
याने जेन जिनिस आवश्यक, जमों जिनिस के तुरुत प्रबंध
आवागमन दवई अउ शिक्षा, सब के पूर्ति यने सब टेम।
लेकिन गांव अभाव मं जीयत, नइ पावन आवश्यक चीज
आवागमन दवई अउ शिक्षा, इंकर कमी देवत तकलीफ।
पर आखिर दुकली हा सोचिस – गांव रथय तेहू इंसान
उंकर साथ जिनगी ला काटंव, दुख ला समझ के सुख भण्डार।