Last modified on 19 अगस्त 2019, at 22:28

गरीबी में हरि दरसन / वसंत यदु

सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:28, 19 अगस्त 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वसंत यदु |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatChhattisg...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

जांगर के जागर जगवइया, बनी भूती के नांव में।
मिले गरीबी में हरिदरसन, सहर पहर अउ गांव में॥

गरमी के गरमी में भुइयां, लसलस ले तिपे हे।
पांव धरत में चट चट जरथे चंदन माथ घिसे हे॥
सांय सांय कर झांझ जकोरे, धुर्रा धरती नापे।
लहू पसीना बनके बोहे, पिरा हीरा कांपे॥
लोहा के लोहा मानिस, बांह भरोसा दांव में ।1।

कट कट दांत ह कतरय, सन सान कान करत हे।
धरे ठुन ठुनी हात पांव ल, सुर सुर नाक बहत हे॥
आगू धूरा आगू थाम्हे, आगू में अभरे हे।
जेखर पुत्र कमाई में सब, बैतरनी पार उतरे हे॥
अब्बड़ सुघर धाम नादर हे, आमा अमली छांव में ।2।

बिजली चमकाय बादर गरजे, घटा घटा । के कारी।
चिखला के दहीकांदो माते, भादो के अधियारी॥
संगी जंवरिहा बने कंवरिहा, छाहित रहव गेवारी।
जेखर ताप बल में मानत हम, नित नव नवा देवारी।
चंदा सुरूज़ आकरे आरती फूल चढ़ा के भाव में ।3।

अइसन भगत के हाल देखके, अड़बड़ आथे रोवासी।
का मथुरा का गोकुल कइहंव, घर में उपजे कासी॥
तीज तिहार अलग दूरिहागे, नोहर बनगे बासी।
कुरिया के भगवान बेचागे, कइसे आवय हांसी॥
घेरी बेरी मोर हवय पैलगी, हात ज़ोर के पांव में ।4।