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गरुँ कि मिठो भूल / वसन्त चौधरी

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गरुँ कि मिठो भूल छोउँ छोउँ लाग्यो मलाई
अँगालोमा बाधिराखुँ कि
यो बैँसको फूल टिपुँ टिपुँ लाग्यो मलाई
मनको फुलदानीमा सजाउँ कि

त्यसै मात लाग्ने ती अधर नसालु
रसिला रसिला ती नजर लजालु
मुस्कान छर्किदा झनै मायालु
आँखामा सजाउँ कि मुटेमै नयालु

झरीमा रुझेका तिम्रा ती केशमा
लुकाउँ कि जिन्दगी मायाको आशमा
छल्किन्छ छाल भई भने त्यो बैँसको
मेटु कि अजुली थापेर प्यास यो

शब्द - बसन्त चौधरी
स्वर - दीपक खरेल
संगीत - दीपक जंगम
एल्बम - माया बल्झेछ