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गर्द-बाद-ए-शरार हैं हम लोग / अमीर हम्ज़ा साक़िब

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गर्द-बाद-ए-शरार हैं हम लोग
किस के जी का ग़ुबार हैं हम लोग

आ के हासिल हो नाज़-ए-इज़्ज़-ओ-शरफ़
आ तेरी रह-गुज़ार हैं हम लोग

बे-कजावा है नाक़ा-ए-दुनिया
और ज़ख़्मी सवार हैं हम लोग

जब्र जे बाब में फ़िरोज़ाँ है
हासिल-ए-इख़्तियार हैं हम लोग

फिर बदन में थकन की गर्द लिए
फिर लब-ए-जू-ए-बार हैं हम लोग

बाद-ए-सर-सर कभी तो बाद-ए-सुमूम
मौज़-ए-ख़ाक-सार हैं हम लोग

चस्म-ए-नर्गिस मगर अलील भी है
किस लिए बे-किनार हैं हम लोग