भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"गर्मी-1 / सुधा गुप्ता" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
पंक्ति 53: पंक्ति 53:
 
धधक रही
 
धधक रही
 
लाल पीली कनेर
 
लाल पीली कनेर
सरकों पर
+
सड़कों पर
 
+
 
13
 
13
 
फूलों से लदा
 
फूलों से लदा
बूला होशो-हवास
+
भूला होशो-हवास
 
अमलतास
 
अमलतास
 
14
 
14
 
हत शोभाश्री
 
हत शोभाश्री
 
निर्जला उपासी
 
निर्जला उपासी
जेथ की धरा
+
जेठ की धरा
 
15
 
15
 
उबल रहे  
 
उबल रहे  

09:00, 3 जुलाई 2021 के समय का अवतरण


1
तन्दूर तपा
धरती रोटी सिंकी
दहके लाल
2
आग का गोला
फट गया सुबह
बिखरे शोले
3
सूखे गले से
कलप रही हवा
घूँट पानी के
4
लपटों -घिरा
अगिया बैताल-सा
लू का थपेड़ा
5
आग की गुफ़ा
भटक गई हवा
जली निकली
6
फटा पड़ा है
हज़ार टुकड़ों में
पोखर-दिला
 7
धूप से तपा
देह पर फफोले
ले, दिन फिरा
8
कुपिता धरा
अगन-महल में
आसन-पाटी
9
धूप दरोगा
गश्त पर निकला
आग-बबूला
10
जेठ की आँच
हवाएँ खौलती हैं
औटते जीव
11
पानी की धुन
सूखे गले भटके
राजा मछेरा*
12
धधक रही
लाल पीली कनेर
सड़कों पर
13
फूलों से लदा
भूला होशो-हवास
अमलतास
14
हत शोभाश्री
निर्जला उपासी
जेठ की धरा
15
उबल रहे
ब्रह्माण्ड के देग में
चर-अचर
16
वन-अरण्य
जलें रूई मानिन्द
लपटें, धुँआ
17
आया है द्वार
धूल-भरी झोली ले
जोगी बैसाख
18
अंगारे बिछा
सोने चली धरती
लपटें ओढ़
19
नीम-बेहोश
करवट से लेटी
है दोपहरी
20
तक़्न है रूखा
होंठों जमीं पपड़ी
वैशाखी धरा
21
प्यासी चिड़िया
ख़ुश , टोंटी में छिपा
दो बूँद पानी
22
कुँए , छबील
प्यास बूझने वाले
मीत लापता
23
सती का शव
काँधे डाले घूमते
बौराए रुद्र
24
गुलमोहर
खिला, आग रंग की
 धूप -छतरी
-0-

  • किंग फिशर

-0-