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गर अपने प्यार का सागर सनम गहरा नहीं होता / 'सज्जन' धर्मेन्द्र

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गर अपने प्यार का सागर सनम गहरा नहीं होता।
तो पानी आज तक चुपचाप यूँ ठहरा नहीं होता।

महक उठती हवा सारी फ़िजा रंगीन हो जाती,
गुलाबों पर जो काँटों का सदा पहरा नहीं होता।

नदी खुद ही स्वयं को शुद्ध कर लेती अगर पानी,
उन्हीं दो चार बाँधों के यहाँ ठहरा नहीं होता।

कभी तो चीख मजलूमों की उस तक भी पहुँचती गर,
हमारे देश का ये हुक्मराँ बहरा नहीं होता।

न होते हाथ बुनकर के न रँगरेजों के रँग होते,
तो खादी का तिरंगा देश में फहरा नहीं होता।